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________________ 46. कल्पसूत्र क्र. स्वरूप पे. कर्ता संवत् कृति विशेषनाम भाषा*गद्य-पद्य*परिमाण आदि-अंत*प्र.क्र. 1372 2 | नगर्षिगणि वि. 16572 | 'कल्पान्तर्वाच्य' * (प्रा.) * पद्य * गाथा 1039, प्रशस्ति श्लोक-15 ग्रं.1151 {पणमिय वीरजिणिंदं अप्पमईणं...तरणिं रेणूवाउस्स विप्फुरियं।।} {1228} 1373 बा.बो. (5) उदयसागरसूरि (2) वि. 1778# ज्ञानविमलसूरिजी कृत भास का बा.बो. * (मा.गु.) * गद्य * (ढाल 16) {अहंत भगवंत श्रीमन्महावीरदेव,...अनंतुं ज्ञान पामे।।} {1137, 1141, 1165} 1374 सज्झाय (6) | 1 ज्ञानविमलसूरि वि. 17282 कल्पसूत्र भासाढालीया * (गु.) * पद्य * ढाल 16 / सर्वगाथा 259 {पुण्यनी पोषणा, पर्व...ज्ञान अनंतू पावेजी।। 18।।) {1137, 1141, 1165, 1181, 1190, 1215, 1224,1236, 1238, 1255, 1257, 1784, 1792313} 1375 | 2 | माणिकविजयजी वि. 1742# | पर्युषणपर्व अंतर्गत कल्पसूत्र के नव व्याख्यान की सज्झाय * (गु.) * पद्य * ढाल 11/ सर्वगाथा 126 {पर्व पजूसण (पजुषण) {पजुसण) आवीया (आवियां), ...दिन आजनो ए) 11911) {1254, 1273, 1748, 1757, 1784-5) 1376 छाया (7) |1| हरिशंकर कालीदास शास्त्री वि. 1971P (सं.) * गद्य * (व्या. 9) {1143} 1377 2 | कन्हैयालालजी मुनि (#) वि. 2014P | घासी. कृत (अर्वा.) कल्पसूत्र की छाया * (सं.) * गद्य * (वाचना 9) {1179) 1378 अर्वा.सूत्र घासीलालजी महाराज वि. 2014P | घासी. कृत (अर्वा.) कल्पसूत्र मूल * (प्रा.) * गद्य * वाचना 9 (तं मंगलमाईए मझे...णिच्चं देइ सिद्धिमणुत्तरम्।।5।।) {1179, 1187, 1218) 1379 अर्वा. टीका | 1| मुक्तिविमलजी पं. वि. 1971 ‘सुखबोधिका (सुबोधिका) टीका संक्षेप' * (सं.) * गद्य * (व्या. (9) 8), प्रशस्ति गद्य {श्री सिद्धार्थधराधिराज सुकुलाकाशप्रकाशा. रुणोदभ्रभ्रान्तितरुद्विपोऽतिकरुणो...सर्वश्वेताम्बर मुनिसमुदाय स्य अधिपतिः श्रीविजयहीरसूरिः।} {1157, 1216, 1244) 1380 | 2 | मुक्तिविमलजी पं. वि.1974 'कल्पमुक्तावली' * (सं.) * गद्य, पद्य * (व्या. 9), प्रशस्ति श्लोक-17 {न चैति साम्यकिल...श्री भद्रबाहुस्वामी स्व. शिष्यान्प्रतीदमुवाचेति।} {1185) 1381 3 | केशरमुनि, | वि. 1993 'कल्पार्थबोधिनी' * (सं.) * गद्य * (व्या. 9), प्रशस्ति श्लोक-65 कृतिसंशो.-लब्धिविजयजी ग्रं.4715 {प्रणम्य श्रीजिनं वक्ष्ये, ...अनेन च गुरुपारतन्त्र्यमभि हितम्।) {1169) 1382 4 | भानुविजयजी वि. 2000 'सुबोधिनी' * (सं.) * पद्य * (व्या. 8) {अभूत् सिद्धार्थाद् यस्तूदयगिरितुल्ये...भूयात्, प्रार्थयामो जिनेश्वरम्।।22511) {1171} 1383 | 5 | कन्हैयालालजी मुनि वि. 2014P | घासी. कृत (अर्वा.) कल्पसूत्र मूल की कल्पमंजरी टीका * (सं.) * गद्य * (वाचना 9) {वर्द्धमानं जिनं नत्वा, ...अनुत्तरां सर्वो. त्कृष्टां सिद्धिं ददातीति।।111211311411511) {1179) (8) 1384 वि. 2042 युगचंद्रसूरि, पुण्यप्रभविजयजी, कृतिसंशो.-तपोरत्नसूरि Hermann Jacobi | सुबोधिका टीकानुसारी बालबोधिका टीका * (सं.) * गद्य * (व्या. 9) {परमकल्याणकारिणं श्रीजगदीश्वरं प्रणम्य...प्रति इदं उक्तवान्।।} {1217) (अं.) * गद्य * (व्या. 9) {1441,1453, 1479, 148134) 1385 अनु. (10) 1 वि. 1940P
SR No.002326
Book TitleAgam Prakashan Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirav B Dagli
PublisherGitarth Ganga
Publication Year2015
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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