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आगम कृति परिचय
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संवत्
स्वरूप
पे. | कर्ता 1361 टीका (2) |1| जिनप्रभसूरि
वि. 13642
कृति विशेषनाम भाषा गद्य-पद्य परिमाण आदि-अंत प्र.क्र. | | 'संदेहविषौषधि' * (सं.) * गद्य * (व्या. 9) ग्रं.3041 {ध्यात्वा
श्रीश्रुतदेवीं पर्युषणाकल्पदुर्गपदविवृतिः।...निरूप्यास्य ग्रंथमानं विनिश्चितं।
सहस्रत्रितयं सैकचत्वारिंशदनुष्टुभां।।304111} {1140) 'कल्पकिरणावली' * (सं.) * गद्य * (व्या. 9), प्रशस्ति श्लोक-3+24 {प्रणम्य प्रणताशेषवीरं वीरजिनेश्वरम्।...अनेन च गुरुपारतन्त्र्यमभिहितमिति।। {1149, 1248)
1362
वि. 1639#
2 | धर्मसागरजी उपाध्याय,
प्रशस्तिकर्ता-अज्ञात
1363
वि. 1674
3| संघविजयजी गणि,
कृतिसंशो.-धनविजयजी उपाध्याय
'कल्पप्रदीपिका' * (सं.) * गद्य * (व्या. 9), प्रशस्ति श्लोक-10 ग्रं.3250 (श्रीवर्द्धमानमर्हन्तं नत्वा नतपुरन्दरं।...च दशाश्रुतस्कन्धसिद्धान्तस्याष्टममध्ययनं समाप्त।।) {1161, 1226} 'कल्पदीपिका' * (सं.) * गद्य * (व्या. 9), प्रशस्ति श्लोक-9 ग्रं.3432 {कल्याणाङ्कुरवृद्धये जलधरं सर्वार्थसम्पत्तिकृत्, ...दशाश्रुतस्कन्धस्याष्टमं अध्ययनं समर्थितम्।) {1160)
1364
वि. 1677#
4 | जयविजयजी पंडित,
कृतिसंशो.-भावविजयजी उपाध्याय
1365
वि. 16852
समयसुंदरजी उपाध्याय, कृतिसंशो.-हर्षनंदन गणि
| 'कल्पलता' * (सं.) * गद्य * (व्या. 9), प्रशस्ति श्लोक-21 ग्रं.7700 {प्रणम्य परमं ज्योतिः, ...शिष्यार्थ पाठकाश्चक्रुः श्रीमत्समयसुन्दराः।। {1166}
1366
6 विनयविजयजी उपाध्याय, वि. 1696
कृतिसंशो.-भावविजयजी उपाध्याय
1367
7| शांतिसागरजी उपाध्याय | वि. 1707
1368
| 8 लक्ष्मीवल्लभ उपाध्याय
वि. 1725#
| 'सुबोधिका' * (सं.) * गद्य * (व्या. 9), प्रशस्ति श्लोक-18 | ग्रं.6580 {प्रणम्य परमश्रेयस्करं श्रीजगदीश्वरम्।...श्रीभद्रबाहुस्वामी स्वशिष्यान् प्रतीदमुवाचेति।।) {1138, 1139, 1144, 1151, 1163, 1193, 1194, 1212, 1214, 1246, 1260, 1261, 1262,1263,1269-15) 'कल्पकौमुदी' * (सं.) * गद्य * (व्या. 9), प्रशस्ति श्लोक-19 ग्रं.3707 (प्रणम्य परमानन्दकन्दकन्दलनाम्बुदम्। वर्द्धमाना. समानश्रीवर्द्धमानजिनेश्वरम्।।...प्रति एवं ब्रूते।।) {1162, 1225) 'कल्पद्रुमकलिका' * (सं.) * गद्य * (व्या. 9), प्रशस्ति श्लोक-5 ग्रं.4109 {श्रीवर्धमानस्य जिनेश्वरस्य जयन्तु...व्याख्यानमाप नवमं परिपूर्तिभावम्} {1146) | 'कल्पसूत्रार्थ प्रबोधिनी' * (सं.) * गद्य * (व्या. 9), प्रशस्ति श्लोक-6 {चरमजिनेशं नत्वा, क्रियते...भद्रबाहुस्वामी स्वशिष्यान् प्रत्याचष्ट।) {1158) (सं.) * गद्य * (व्या. 9) ग्रं.640 {प्रणम्य वीरमाश्चर्यसेवधि विधिदर्शकम्...निशियचूर्णो दशमोद्देशके भणितम् ।। {1174} 'कल्पान्तर्वाच्य', 'कल्पसमर्थन' * (प्रा., सं.) * गद्य * (व्या. 9) ग्रं.977 {(वाच्यानि) पुरिमचरिमाण कप्पो...व्याख्यानानि) इति कल्पसमर्थनम्।। {1164)
1369
|| राजेन्द्रसूरि भट्टारक
वि. 1954
1370 टिप्पण (3)
पृथ्वीचंद्रसूरि
वि. 1215#
1371 अन्तर्वाच्य
1 पूर्वाचार्य