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32. आवश्यकसूत्र
संवत्
1138
स्वरूप पे. | कर्ता
कृति विशेषनाम भाषा*गद्य-पद्य*परिमाण आदि-अंत*प्र.क्र. 7 | उदयसागरसूरि
वि. 17782 षडावश्यक की सज्झाय * (गु.) * पद्य * ढाल 5 / सर्वगाथा 67,
कळश 1 (अष्टपदात्मक) {श्री सद्गुरुने सदा...भणो भवियण
शिवभणी।।1।1} {961} 1139 छाया (10) हरगोविंददास त्रिकमचंद | वि. 1971P विशे. भा. की छाया * (सं.) * गद्य * (गाथा 3603) 1956, 970, शेठ पंडित (#)
974, 98934} 1140
धीरुभाई प्रेमशंकर ठाकर | वि. 2003P | 'निह्नववाद' * (सं.) * पद्य * (गाथा 2296-2620) {968}
डॉ. (#) 1141
| घासीलालजी महाराज (#) | वि. 2007P | (सं.) * गद्य * (अ.6) {969) 1142 अर्वा. टीका घासीलालजी महाराज | वि. 2007P | 'मुनितोषणी' * (सं.) * गद्य * (अ.6) {इह हि जन्मजरामरणा(11)
ऽऽधिव्याधिजनितदुःखपटलसंकुले...मि दुक्कडं' व्याख्यातपूर्व
मिदमित्यलमामेडितेन।।} {969) |1143/शब्द., अनु., | 1 | पारसमल चण्डालिया, वि. 2062P | (हिं.) * गद्य * (अ.6) {996} विवे. (12) कृतिसंशो. नेमिचंदजी
बांठिया 1144
2 | रूपाबाई साध्वी वि. 2062P | (गु.) * गद्य * (अ.6) {995} 1145 अनु. (13) |1| अमोलकऋषि वि. 1976P | स्पष्टीकरणयुक्त * (हिं.) * गद्य * (अ. 6) {960) 1146 | 2 | धीरुभाई प्रेमशंकर ठाकर | वि. 2003P | | निह्नववाद विभाग की गाथाओं का अनु. * (अं.) * गद्य *
(गाथा 2296-2620) {968} 1147
3 दीपरत्नसागरजी वि. 2053P | (गु.) * गद्य * (अ. 6) {1000, 1460) 1148
4 | दीपरत्नसागरजी वि. 2058P (हिं.) * गद्य * (अ.6) {1475) 1149 अनु., विवे. सुप्रभाजी साध्वी डॉ. वि. 2051P (हिं.) * गद्य * (अ.6) {981)
(14) 1150 नियुक्तिअनु. 1| दीपरत्नसागरजी | वि. 2042# | (गु.) * गद्य * (गाथा 1005) {1001)
डॉ.
(15)
1151
| (गु.) * गद्य * (गाथा 1109) {987}
2 | रत्नशेखरसूरि
सरसरि 3 | दुलहराजजी मुनि
वि. 2035# वि. 2058P
1152
| (हिं.) * गद्य * (अ. 1) (गाथा 680) {985}
1153
वि. 2067 | (गु.) * गद्य * (गाथा 1625), प्रशस्ति गद्य (सं., गु.) {1003)
4 आर्यरक्षितविजयजी,
कृतिसंशो.-भव्यसुंदरविजयजी 1| चुनीलाल हकमचंद शाह
1154 भाष्यानु.
(16)
वि. 1980P
विशे.भा. का अनु. * (गु.) * गद्य * (गाथा 3603) {963, 975, 983}
1155
वि. 20352
| 'मूल भाष्य का अनु.' * (गु.) * गद्य * (गाथा 204) {987)
2 | रत्नशेखरसूरि
दीपरत्नसागरजी
1156
वि. 2066P
| 'मूल भाष्य का अनु.' * (गु.) * गद्य * (गाथा 151) {1001)
1157
4
वि. 2067P | 'मूल भाष्य का अनु.' * (गु.) * गद्य * (गाथा 255) {1003)
| आर्यरक्षितविजयजी,
कृतिसंशो.-भव्यसुंदरविजयजी