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________________ 148) तपस्या आंतरिक कषायों से मुक्ति का माध्यम | दिखाई देना चाहिए। है । कर्मो का पिघलना ही 'तप' है। 160) सामायिक से चारित्र की शद्धि होती है, 149) भारत जैसे गरीब देशमें, जहाँ लाखों लोग वही संसार की सबसे कीमती पूंजी है। कुपोषण के शिकार है, खाद्य पदार्थो की 161) जिस प्रकार औषधि को जेब में रखलेने से बरबादी सामाजिक अपराध है। रोग नहीं मिटता, उसी प्रकार यदि सामायिक 150) प्रातः काल व संध्याकाल का समय आत्मा में न रमे तो भव भ्रमण नहीं मिटता । आत्मविकास के लिए अति उपयोगी है । 162) सामायिक की साधना से नर नारायण बन चिंतन मनन व धर्म के लिए यह समय सर्वश्रेष्ठ जाते हैं। है। 163) परिग्रह समस्त बुराइयों की जड़ है। परिग्रह 151) जिस प्रतिक्रमण में पश्चाताप न हो वह सिर्फ की भूख जब बढ़ जाती है तो बुद्धि और द्रव्य प्रतिक्रमण है। विवेक सो जाते है। 152) सामायिक और प्रतिक्रमण श्वास से भी 164) संसार के समस्त संबंध खुली आँखों से अधिक महत्वपूर्ण है। देखे गए सपने के समान है। 153) जिस देश के लाखों लोग गरीबी में जीते 165) सदाचार, तप-नियम संयम व धर्म आराधना है उस देश में घी व तेल के दिये जलाना को जीवन का अभिन्न हिस्सा बना लेना "एक भयानक पाप है' (महात्मा गांधी)। चाहिए। 154) मनुष्य की आवश्यकताओं को पूर्ण करने में 166) धर्म का रास्ता भूलों के परिमार्जन और प्रकृति सक्षम है, लेकिन उसकी इच्छाओं कषायों के उपशमन के लिए ही है । को पूरा करने में नही । 167) धर्म विमुखता ही मनुष्य के दुःख का मूल 155) आज लोग भगवान महावीर, राम और कृष्ण कारण है। का नाम तो लेते हैं, लेकिन उनके गुणों को विस्मृत कर देते है। 168) जिसने स्वयं को जाना और पहचान लिया है, वह दुःखों से मुक्त हो जाता है । 156) नाम-कीर्तन, गुण-कीर्तन व गुणवरण परम कल्याणकारी हैं । किंतु नाम कीर्तन से गुण 169) क्षमायाचना व क्षमादान क्षमापर्व के दो रूप कीर्तन व गुण कीर्तन से गुणवरण श्रेष्ठ है । 157) कोई भी वस्तु यदि सहज उपलब्ध हो तो 170) जिसमें आत्म शक्ति का भंडार होता है, . उसका दुरूपयोग होने लगता है । वस्तु वही दूसरों को क्षमा कर सकता है। दुर्लभ हो तो मनुष्य उसका उपयोग विवेक 171) ज्ञान के अभाव में विज्ञान, विनाश का से करता है। कारण बनेगा। 158) मानव भव की हरेक घड़ी अनमोल है क्योंकि 172) कोई भी कार्य करने से पहले यह सोचें कि एक पल भी केवलज्ञान होने में निमित्त बन क्या इससे हमारा या किसी दूसरे का भला सकता है। होगा? यदि उत्तर ना में हो तो ऐसा कार्य 159) सामायिक का प्रभाव व्यक्ति के आचरण में न करें। 69
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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