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________________ 16) प्रवचनांश-बैंगलोर 13) सदैव सत्य पर श्रद्धा रखो । 1) जिस प्रकार अनाज को खला छोड़ देने 14) जीव के अज्ञान का मूल है 'मोहनीय कर्म' | पर उसमें कीड़े लगने का भय रहता है, | 15) ज्ञान को बंध व पाप का कारण मान कर अज्ञान उसी प्रकार जीवन को खुला छोड़ देने पर | को अच्छा मानना अज्ञान मिथ्यात्व है। कुसंस्कारो का भय लगा रहता है। सांशयिक मिथ्यात्व से बचने का एक मात्र अज्ञानी की मासखमण की तपस्या भी ज्ञानी उपाय जिनेश्वर के वचनों में दृढ़ विश्वास के नवकारसी के तप की बराबरी नहीं कर करना ही है । सकती। आज कषाय रूपी जहर के कारण हमारा संवर व निर्जरा के बिना जीवन में दुर्भाग्य जीना दुष्कर हो रहा है। का उदय होगा। 18) सावधानी पूर्वक संयम व विवेक से जीवन वह माता पिता शत्रु है जिन्होंने अपने बच्चों जीना चाहिए। को धार्मिक संस्कार नही दिए । 19) कर्मो को भोगे बिना मुक्ति नहीं मिलती। जीव स्वयं ही कर्मो का कर्ता व भोक्ता है, 20) मिथ्यात्व घार अंधकार है। भगवान न तो कर्म बँधवाते है व न हीं छुड़वाते 21) प्रभु की वाणी त्रिकाल सत्य है, व इसमें हैं, वे तो धर्मोपदेश द्वारा मार्ग दर्शन करते संशय का कोई स्थान नहीं है। अनर्थ दण्ड से बचना है, तो जीवन की 22) दुःख हमारे ही पूर्वकृत कर्मों के परिणाम हैं, धैर्य से हम उनका सामना सहजता से गाड़ी को सीमित मर्यादा से चलाओ। कर सकते हैं। 7) पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण से अनर्थ 23) की बढ़ोतरी हो रही है। मृत्यु अवश्यं भावी है, अपरिहार्य है। अज्ञानी जीव अपने कुकर्मों के कारण मृत्यु से घबराता जीवन में श्रावक के लिए चार विश्राम होते है, जबकि ज्ञानी जन अपने जीवन को है - 1) अणुव्रत धारण 2) सामायिक व सजाकर मृत्यु को महोत्सव बना देते हैं। चौदह नियम पालन 3) दयाधर्म व पौषध हमारा जीवन ताश के पत्तों के महल से भी 4) क्षमापना + पंडित मरण प्राप्त करना। अधिक अविश्वसनीय है। स्वाध्याय द्वारा ही हित अहित का ज्ञान 25) ज्ञान इस विश्व में सूरजसम प्रकाशमान व होता है। उपयोगी है, ज्ञान सीखे बिना हम ज्ञान के चारित्र मोहनीय कर्म के उदय से होने वाले महत्व और उसके आनंद को समझ नहीं राग व द्वेष रूपी कषाय भाव का नाम ही सकते। असंयम है। ज्ञान सीखने के लिए उम्र की कोई सीमा 11) अधर्म का त्याग व धर्म की प्रवृति जीवन को | नहीं है। धन की सार्थकता इसी में है कि सुखी बनाने के अचूक उपाय हैं। उसका उपयोग दान में किया जाए। 12) धर्म ध्यान के बदले सांसारिक फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए। | 27) ज्ञानदान महादान है। 8) 24) - 26)
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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