SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 28) जबसे महिलाएँ 'छिपने की बजाय जिस प्रकार आग में कितनी भी लकड़ियाँ 'छपने लगी है, तबसे उनकी सुरक्षा का डालो आग कभी मना नहीं करती, और संकट उत्पन्न हो गया है। बढ़ती जाती है व लकड़ियाँ राख हो जाती 29) जिनवाणी को जीवन में उतारे बिना कल्याण है, उसी प्रकार इन्द्रियों की भूख भी कभी संभव नहीं है। शांत नही होती । इन्द्रियों से अनुभूत सुख को सर्वोपरि मानकर यदि हम स्वयं को तृष्णा 30) ज्ञान की आँख के बगैर धन का सदुपयोग व भोग की आग में समर्पित करते रहे तो नहीं हो सकता। आग में भस्मीभूत होनेवाली लकड़ियों की 31) सामायिक चेतन है परंतु जड़ नहीं । भांति हमारी दुर्गति निश्चित है। साधना मे निरंतरता व समयबद्धता हो तो | 43) संसार के सारे सुख चार दिन की चाँदनी साधना का फल अवश्य मिलता है। की भांति है। समता व संयम ही वास्तविक सुख है। 33) सामायिक से दुर्गुणों का नाश व सद्गुणों की वृद्धि होती है। 44) अनंत यात्रा के बाद मिला मुक्ति का एक स्वर्णिम अवसर है, मानव जीवन ! इस सामायिक आत्मा की सफाई की एक सर्व अवसर को विषय भोगों मे मत गँवाओ । सुलभ विधि है। प्रमाद से मुक्त हो, मुक्ति के लिए पुरूषार्थ 35) सामायिक एक ऐसी औषधि है जिसमें इफैक्ट करो। तो है पर साइड इफैक्ट नहीं है ।सामायिक 45) शुद्ध भावों से की गई एक सामायिक भी रूपी परम औषधि से पुराने रोग दूर होते हैं संसार चक्र से छुटकारा दिलवा सकती है। व नए रोग का आगमन नहीं होता । 46) जिस मनुष्य के मन में परिग्रह की अग्नि 36) सद्गुणों में वृद्धि करने के लिए सत् साहित्य धधकने लगती है वह शांति व सुख से कोसों का अध्ययन करना चाहिए। दूर चला जाता है । मनुष्य का अंत हो जाता 37) धन से अमीरी पाई जा सकती है, सुख । है मगर परिग्रह का कोई अंत नहीं है। नहीं, सुख प्राप्ति करने का एकमात्र साधन 47) आवश्यकताओं को सीमित रखो । है संतोष । 48) जो जैसा करेगा वैसा भरेगा, यह ध्रुव सत्य 38) 'त्याग' करने में ही सच्चा सुख है। 39) सुख प्राप्ति के लिए अपरिग्रह की भावना | 49) यह एक विडंबना ही है कि एक ओर गरीबों का हृदय में संचार करना होगा। को भरपेट भोजन नहीं मिलता, वहीं दूसरी 40) धर्म के अभाव में समृद्धि, पतन की ओर ओर धनवान जरूरत से ज्यादा खाकर ले जाएगी। बीमारी को न्योता देता है। 41) किसी जीव को त्रास देकर क्षण भर के | 50) मनुष्य लोभ व तृष्णा रुपी बीमारी से ग्रस्त लिए सुख प्राप्ति का भ्रम भले हो, किन्तु | अन्त में वह दुःख का ही कारण बनेगा। । 51) जिस मनुष्य भव को पाने के लिए देवता भी
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy