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________________ आडम्बर-रहित जीवन जीने की प्रतिज्ञा ली। उसके बाद समय जैसे पंख लगाकर उड़ने इतने सारे काम हुए, वह भी इतनी सहजता से, कि | लगा । आपके सान्निध्य में, आपकी शीतल, सुखद क्या कहें? सच कहें तो हमें कुछ करना ही नहीं पड़ा | छत्रछाया में चार महीने कब बीत गए कुछ पता ही । हम तो बस गुरु चरणों में अर्पित थे, समर्पित थे। नहीं चला | पता चला तो सिर्फ यह कि चातुर्मास गमतभी हमारा संजनो सील केसी | सम्पन्न होते ही आप हमें छोड़कर चल देंगे । गुरुदेव कक्षा का संघ है । फिर भी जो उत्साह धर्म के प्रति हम आपसे कहना चाहते हैं कि "अभी न जाओ छोड़कर यहाँ जगा, आपको हम यह विश्वास दिलाते हैं कि कि दिल अभी भरा नहीं" | अभी तो हम आपकी आपने यह बीज जो यहाँ पर बोया है, उसे एक दिन अंगुली पकड़कर चलना सीख ही रहे थे कि आप अवश्य ही पेड़ के रुप में खड़ा करेंगे। अंगुली छुड़ाने की बात करने लगे हो । अभी तो चमन में कोंपले फूट ही रही हैं और चमन का माली चमन गत वर्ष चातुर्मास के पश्चात शेषकाल में गुरुदेव छोड़कर जाने लगा है। यह असह्य है । हम तो मिट्टी 4-5 दिन के लिए शांतिनगर पधारे थे । मुनिश्री के होली चातर्मास की अभिलाषा जागी । विनती करने के लौंदे थे। आपने कुम्हार की भांति कभी चोट करते पर गुरुदेव ने कहा कि क्या दोगे? हमने कहा अहा हुए. कभी थपथपाते हुए हमें घड़ा। गुरुदेव, हमारे पास देने लायक है ही क्या ? आप आज इन कच्चे घड़ों को छोड़कर आप जाने जैसे समताभावी, समदर्शी, संपन्न, त्यागी परमज्ञानी की तैयारी कर रहे हो | आप तो सबके हो, लेकिन संत के समक्ष हम तो जानते थे कि आपकी उपस्थिति हमारा आपके सिवा कौन है? मात्र से सारे कार्य होंगे । स्थानकवासी, मंदिरवासी, गुरुदेव एक ही बात कहनी है । जैसे एक पिता तेरापंथी समस्त साधर्मिक भाईयों के सहयोग से अपने बच्चों की गलतियों को माफ कर देता है, वैसे सामायिक की संख्या 6500 हो गई। होली चातुर्मास ही हे प्रखर चिंतक, हे तत्त्वदशी, आप हमें क्षमा के बाद आप हमें छोड़कर चल दिए, लेकिन हम करना । जाने-अनजाने में हमसे कोई भूल हुई हो, आपको कहाँ छोड़नेवाले थे ? होली चातुर्मास के आपके आदेश का उल्लंघन, अवज्ञा या अवहेलना दौरान धर्म-ध्यान की जो प्यास आपने जगाई, उसे हुई हो तो हम क्षमाप्रार्थी हैं। शांतिनगर संघ आपके बुझाने के लिए आपको शांतिनगर तो आना ही था । अनंत उपकारों को कभी भूल नहीं पाएगा । साथ ही उस दिन के बाद सुश्रावक शांतिलालजी डूंगरवाल मेरे स्वयं के द्वारा प्रत्यक्ष या परोक्ष रुप से हुई गलती. प्रत्येक रविवार शांतिनगर पधारते एवं धर्मध्यान की अलख जगाते । यह सब गुरु भगवन्तों का ही प्रसाद को आप क्षमा देकर मुझे उपकृत करें, यही मेरी था । अक्कीपेट में जैसे ही आपने शांतिनगर में चातुर्मास अभिलाषा है। करने की घोषणा की, हम तो फले नहीं समाये । मुनिवर के इस पच्चीसवें ऐतिहासिक चातुर्मास आपकी कृपा दृष्टि पड़ते ही शांतिनगर का छोटा सा की सफलता में हमें जिन महानुभावों का प्रत्यक्ष या संघ अचानक बड़ा हो गया, विशिष्ट हो गया । जिस परोक्ष सहयोग मिला, हम उनके प्रति अपनी कृतज्ञता संघ का अपना भवन तक नही, उस संघ को आपने ज्ञापित करते हैं। गुरुदेव श्री के संयम जीवन का यह अपना चातुर्मास प्रवास दे दिया । हमारी खुशी का पच्चीसवां वर्ष चल रहा है । यानि सिल्वर ज्युबली पारावार कैसे रहता गुरुवर? हम तो वर्ष, और इसे यह एक सुयोग ही कहा जाएगा कि इस पात्र भी नहीं थे, और हमें पूरा समुद्र मिल गया था पच्चीसवें वर्ष के पर्युषण पर्व को भी लालबाग के सिल्वर । यहाँ तो सौभाग्य का समूचा सूर्य ही हमारे आँगन में ज्युबली हॉल में मनाया गया । जो कि बेंगलोर के उतर आया था।
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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