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________________ 2003 शांतिनगर बेंगलोर ) समर्थ थे । ऊटी में तीन बार विनती करने के बाद हमने मैसूर व मदुर में भी जाकर विनती की । गुरुदेव ज्ञान गच्छाधिपति, श्रमण श्रेष्ठ तपस्वीराज स्वास्थ्य संबंधी कारणों से कर्नाटक की ओर आ रहे श्री चम्पालाल म.सा के शिष्य प्रखर व्याख्यानी, | थे और हम सब अपने हटय में गरुवर के चातर्मास शिविराचार्य, जन-जन की आस्था के केन्द्र परम पूज्य की आस लिए उनके पीछे लगे हुए थे । आखिरकार श्री विनयमुनिजी म.सा. खींचन के श्री चरणों में 8 जुलाई को हमारे सौभाग्य का सूरज उदित हुआ कोटि-कोटि वंदन करते हुए धर्म सभा में उपस्थित और गरुवर ने अक्कीपेट स्थानक में शांतिनगर बेंगलोर धर्मप्रेमी भाईयों एवं बहनों का तहेदिल से श्री संघ की में चातुर्मास करने की घोषणा की । 10 जुलाई का ओर से हार्दिक स्वागत दिन शांतिनगर श्री संघ के लिए एक अविस्मरणीय समय अपनी गति से निरंतर आगे बढ़ता दिन बन गया । गुरुदेव का चातुर्मास शुरु हुआ । रहता है । भविष्य को वर्तमान में और वर्तमान को शांतिनगर के साथ ही समूचा बेंगलोर गुरुदेव के अमृत अतीत में बदलते हुए निरंतर आगे बढ़ रहे समय चक्र वचनों से लाभान्वित होने लगा । गुरुदेव की प्रेरणा से को रोक पाना किसी के लिए संभव नहीं है । समय के जप-तप, धर्म ध्यान की गंगा बहने लगी और सैंकड़ों समक्ष मनुष्य असमर्थ है, असहाय है । एक समय वह आत्माएँ संवर व निर्जरा द्वारा शांति, मैत्री व मुक्ति था, जब सारा शांतिनगर श्रद्धेय विनयमुनिजी के की राह पर आगे बढ़ने लगीं। आगमन के शुभ समाचार से पुलकित था और पलक चातुर्मास के चार महीनों के दौरान डेढ़ लाख पावड़े बिछाकर उनके स्वागत की तैयारी कर रहा था से भी अधिक सामायिकें हई, एक ही दिन तीन । एक समय वह था, जब परमात्मा की असीम अनुकम्पा मासखमण के प्रत्याख्यान लिए गए, जिन्हें मिलाकर और शांतिनगर संघ के प्रबल पुण्योदय से मुनिवर का कुल 5 मासखमण हए, कार्तिक ज्ञान पंचमी में 141 शांतिनगर में पदार्पण हुआ था । और शांतिनगर की दया, दीपावली के दिन 36 तेले की तपस्यायें तथा धरा धन्य हो उठी थी । जैसे मरुस्थल में बरसात 45 पौषध, चातुर्मास दौरान 100 से अधिक बड़ी की फुहार पड़े और मरुभूमि की तपन मिट जाए, तपस्यायें तथा तेले, पाँच, छः, नौ, सोलह, अठारह, जैसे बसंत के आगमन पर लूंठ हो चले वृक्षों में इक्कीस तथा अन्य कई तरह की तपस्याओं का ठाठ नवजीवन का संचार हो और वे फिर से हरे-भरे हो लगा रहा । 130 जोड़ी एकासन, बियासन की अट्ठाई, जाएँ । कुछ वैसी ही नवीनता, प्रफुल्लता, प्रसन्नता दीपावली के दिन भगवान महावीर की अंतिम देशना सर्वत्र दृष्टिगोचर हो रही थी। उत्तराध्ययन सूत्र के 2000 सूत्रों का पारायण किया ___गुरुदेव शांतिनगर में चातुर्मासार्थ पधारें, यह गया। हमारे संघ अध्यक्ष श्रीमान मोहनलालजी साहब सुनहरा सपना मन मस्तिष्क मे संजोये हुए थे । ऊटी मुथा के निवास पर सभी महिलाओं ने तपस्या की में जब पहली बार 14 मई को विनती लेकर गए तो | तथा उनकी धर्मपत्नी श्रीमती मैनाबाई मुथा ने तो मन में बड़ी उहापोह की स्थिति थी । देशभर के बड़े- चातुर्मास के दौरान दो-दो बार बड़ी तपस्या कर डाली बड़े संघ मुनिवर के चातुर्मास के लिए लालायित थे। । तथा शांतिनगर श्री संघ को गुरुदेव श्री के इस चातुर्मास हमें तो अपनी बात कहते हुए भी झिझक थी । नया के दौरान एक ओर उपलब्धि गुटखे के त्याग की हुई नया संघ बना था । वहाँ तो गुरुदेव के चरणों में । हमारे संघ के चार नवयुवकों ने जो कि पिछले 27 विनती रखने के लिए लोग कतार में खड़े थे। वह भी | सालों से गुटखे रुपी जहर का सेवन कर रहे थे. उन एक से बढ़कर एक, बड़े-बड़े संघ, जो सब भांति | सबने जीवन पर्यंत गुटखे का त्याग कर दिया ।
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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