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होती है। 1) माता-पिता की सेवा करने 261) जीवन एक यात्रा हैं, मृत्यु एक पड़ाव । वालों पर, 2) पतिव्रता स्त्री के घर,
262) जीवन एक नाटक, और मृत्यु एक पटाक्षेप | 3) साधर्मी की सेवा करने वाले के घर, 4) सत्यवादी-ईमानदार व्यापारी के घर ।
263) मृत्यु भय और आतंक नहीं है, यह तो
सृष्टि की सुरक्षा, सौन्दर्यता और सरसता 248) दो समय में मस्तिष्क को शांत रखना,
1) कार्य में सफलता मिली हो । 2) असफलता मिली हो ।
264) न्यूनतम लेना, अधिकतम देना, और
श्रेष्ठतम जीना। 249) उत्साह एक बीज है - सफलता के फल लगते हैं।
265) नींद छोटी मृत्यु है, मृत्यु बड़ी नींद है । 250) समय पर टांका (Stitch), नये टांके से बचाता
266) माँ हँसती हैं बच्चों पर, मौत हंसती है हम
पर। 251) आदत नौकर की तरह हो तो ठीक, अगर 267) मृत्यु का स्मरण आते ही धर्म का मूल्य बढ़ आदत मालिक की तरह बन जावे तो अच्छा
जाता है। नहीं।
268) घर से बाहर निकलने से पहले बीमा 252) फैशन व व्यसन से बचो ।
करवाले? क्योंकि बाहर तो मौत मंडरा
रही है। 253) औदारिक शरीर में तीन दोष, (अस्थिर, मलिनता, परवशता)।
269) धर्म ध्यान करना ही जीवन का असली 254) लज्जावान में चार गुण - 1) दुराचार का
बीमा करवाना है। त्याग, 2) सदाचार का पालन, 3) धर्म | 270) किसी की अर्थी देखकर अपनी मृत्यु का पालन में दृढ़ता, 4) नम्रता की बढ़ोतरी
बोध ले लेवें, क्योंकि दूसरे की मृत्यु हमारे 255) निर्लज्जता पर दोहा :
लिए एक चुनौती है। निर्लज्ज नर लाजे नहीं, करो कोटि धिक्कार। |
271) अगर हमारे इरादे पवित्र हो तो मृत्यु सुखदाई
होगी। नाक कटने पर कहे, अंग ओछा भार ।
272) मृत्यु इस भव का अन्त, और दूसरे भव का 256) मृत्यु का पन्ना ही जीवन का मर्म जानता
प्रारम्भ है।
273) शरीर तो रोगों व बीमारियों का घर है । 257) मृत्यु जीवन का सबसे बड़ा शास्त्र है।
274) सच्चा धर्मात्मा वह है जिसका मस्तिष्क बर्फ 258) मृत्यु का स्वाध्याय ही जिन्दगी का असली
सा ठंडा हो, तथा जिसका हृदय मक्खन स्वाध्याय है।
सा कोमल हो। 259) बिना धर्म चिन्तन के व्रत नियमों की महत्ता
275) शुभ कार्य में कभी विलम्ब न करें। कैसे जान पायेंगे ?
276) जिसकी दृष्टि भाव पर, वह संतोषी, वह 260) जिन्दगी में धर्म ध्यान की किरण तो होनी । ही चाहिए।
सुखी ।