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197) सच्चा सुख प्राप्त करने में थोडा दुःख तो | 209) दान, शील, तप और भाव मोक्ष द्वार हैं। भोगना पड़ेगा भाई ?
210) मनुष्य भव को सार्थक बनाएँ। 198) धर्मात्मा को भगवान भी अपने साथ रखना 211) सुगन्ध निकलने के बाद फूल की क्या कीमत, चाहते हैं।
धर्म निकलने के बाद जीवन की क्या 199) धर्म, तप, व जप के फल की प्राप्ति में
कीमत? उतावली मत करो।
212) जीवन में पुण्य कम कमावे तो कोई बात
नहीं, परन्तु जीवन में पाप से दूर ही रहे 200) तारुफ रोग हो जाए तो उसको भूलना बेहतर ।
तो ही अच्छा रहेगा। ताल्लुक बोझ बन जाए तो उसको तोड़ना अच्छा ।
213) न खरचो नूर आँखो का, किसी के दोष
देखने में, मिली है आँख तो करलो दर्शन वो अफ़साना जिसे अंजाम तक लाना ना
संतो के। हो मुमकिन । उसे एक खुबसुरत मोड़ देकर छोडना अच्छा। 214) वहम को दूर करने के लिए कान की जगह,
ज्ञान से देखना सीखो। 201) पाना नहीं जीवन को; बदलना है साधना ।
215) सत्य के पुजारी मुसीबत से डरते नहीं हैं, 202) परमात्मा ने मात्र सुखकारी रास्ता (सर्जन) दिया है, दुःख तो स्वयं मनुष्य की पैदा की
मौत भी आए परन्तु पग पीछे धरते नहीं। गई वस्तु है।
216) जीवन पर्यन्त नया-नया ज्ञान सीखते रहना 203) सामान्य मनुष्यों का जीवन पुरुषार्थ (बुद्धि
चाहिए, ज्ञान ही धर्म कला सिखाता है । भी) की बजाय भाग्य से चलता है ।
217) सुनो प्रभु वचन, खिलेगा सद्गुण चमन
बनेगा जीवन नंदन वन, फिर मिलेगा सिद्ध 204). उदार हृदय के बिना धनवान भी एक
सदन। भिखारी ही है।
218) पत्थर में मात्र प्रतिमा ही छिपी हैं, परन्तु 205) हम वह थे कि जिसके सामने लोहा भी
आत्मा में तो परमात्मा छिपा है । मोम था, कैसे मोह-स्नेह की लौ में पिघल
219) समर्पण है तो शर्त नहीं, शर्त है तो समर्पण गए।
नहीं। 206) दुनिया को तलवार से नहीं, प्रेम से जीतो,
220) पिता के कच्चे मकान में पाँच पुत्र रह सकते विष को विष से नहीं अमृत की धार से
हैं, परन्तु पाँच पुत्रों के पाँच महल में पिता जीतो, आप किसीको जीतना चाहते हो तो,
को नहीं रख सकते हैं। फटकार से नहीं, प्यार से जीतो ।
221) हाय रे... मैं कौन हूँ ? मैं कहाँ से आया 207) नारकी जीव दुःख में दीन है, तिर्यंच पुण्य
हूँ ? मेरा क्या स्वरुप हैं ? मैं इन सम्बन्धों से हीन है । देव सुख में लीन हैं, मनुष्य
को रखू या त्याग करूं? इन सब से भिन्न है।
222) गुस्सा जिगर से जीभ में आता है, जीभ 208) जीवन में ज्योति बनकर जीना सीखो, ज्वाला
से हाथ पैरों मे आता हैं, परन्तु गुस्से की बनकर नहीं।
समाप्ति में पश्चाताप आता है।