SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 145) सम्पत्ति देनेवाले बहुत लोग हैं, परन्तु समय | 156) सभी तुझे अच्छा मिला, तू नहीं तेरे पुण्य देने वाले बहुत थोड़े लोग हैं। का फल है, और पुण्य को बांधता है धर्म | 146) परिस्थिति बदलने की ताकत परमात्मा में 157) धन तो बहुत घरों मे मिलता है, परन्तु नहीं होती है, परन्तु मनःस्थिति बदलने मोटा-मन बहुत कम घरों (दिलों) मे मिलता (सुधारने) की ताकत मानव में होती है। 147) अनन्त का भटकाया, सेवा नहीं की भगवान। 158) टुकड़ा न काम आता, टूटी हुई शमशीर सेवा नहीं की सद्गुरु की, छोड़या नहीं का, देवता भी क्या करे, टूटी हुई (रुठी अभिमान ।। हुई) तकदीर का । 148) शब्दों का महत्व जितना नहीं है उससे भी 159) जिसके भीतर गुणों का न्यास वही सन्यासी अधिक महत्व है कि शब्दों को कौन बोल रहा है? 149) समस्या का समाधान पुण्य करता हैं, परन्तु 160) दुःख से मुक्ति के लिए स्वयं पर विजय धर्म तो समस्या को ही पैदा नहीं होने देता प्राप्त करो। 161) तृष्णा दुःख का द्वार है। 150) पेट और पेटी जब खूब भरते है, तब आलस 162) धर्म की शरण में आना ही श्रेयस्कर है । और शत्रु पैदा होते है। 163) "मर्यादा” जीवन का सुरक्षा कवच है। 151) मिलती है देह मिट्टी में, परन्तु मानव का नाम जीता है । आत्मा (जीव)(शरीर 164) भीतर की गांठो को खोलने का पर्व है - छोड़ना) “सम्वत्सरी” मृत्यु प्राप्त करता है, परन्तु उसके सत्कर्म 165) ध्यान का अर्थ है अन्तर्मुख होना । जीते है। 166) क्षमा सर्वोच्च धर्म है। 152) जो धन का दान करता है, वह धन का 167) क्षमा की शक्ति असीम है । मालिक है, परन्तु जो धन को केवल इकट्ठा करता है व रक्षा करता है, वह वाचमैन है। 168) क्षमा में अद्भुत शक्ति है । 153) अपने लोग आपसे टूटने लगे समझो, 169) खिण निकमो रहनो नही, झलके सदा महाभारत है, टूटे लोग पुनः जुड़ने लगे अधीर । बात पचावे पेट में, सो गहरो गंभीर । समझो रामायण है। 170) छम-छम बाजे धुंघरा, धम धम बाजे पाँव । 154) सन्त के पास गए फिर भी शान्ति नहीं . सुख लक्ष्मी रा धूंधरा, मूर्ख बजावे पाँव । मिलती तो समझो कि अपने अन्दर ही कोई कमजोरी है। 171) दुनिया का मोटा पाप दो, पहला - आत्म घात, दूसरा - गर्भपात 155) धर्म स्थानक में गए, परन्तु शुद्धि न कर सके, घर में गए परन्तु शान्ति न मिली, | 172) आत्मघात में तो मनुष्य मरता है, परन्तु समझना अपनी ही कुछ भूल हैं। गर्भपात में मनुष्यता (मिनखपणा) मरती
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy