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73) धन देवे वह सेठ, धर्म देवे वह अरिहन्त, | 85) बड़ो को अधिकार दुःख देता है, छोटों को परन्तु गुण देवे वह गुरु होता है।
अहंकार दुःख देता है | 74) पेट की भूख आदमी को लाचार बनाती है, 86) नीति वाक्य : धन प्राप्त करो नीति से,
जबकि पैसे की भूख व्यक्ति को क्रूर बनाती धन खर्च करो रीति से धन उपयोग करो है । अतः सावधान रहना चाहिए ।
प्रीति से। 75) तन की आँख खुलती है, तो भगवान दिखाई
| 87) मार्ग आवे, मार्ग जावे, उन्हें कोई नही नहीं देता है, परन्तु जब मन की आँख
सतावे | खुलती है तो भगवान दिखाई देता है।
मानव ! भूतकाल कब याद करता है ? 76) गुरु तुम्हारे चरणों में आतम झोली खाली जब वर्तमान कमजोर होता है।
है, तन मन को दो चावल दे दो, भेट सुदामा सजा मनुष्य के शरीर को स्पर्शती है, जब वाली है।
कि क्षमा - आत्मा को (हृदय) स्पर्शती है । BIRTH IS A MESSAGE OF DEATH
90) देने के बाद भूल गया, उसका नाम है
“दान” | 78) दुनिया में सच्चा मनुष्य कड़वा लगता है,
बर्फ बेचने वाला पानी का पैसा (करता) परन्तु कपटी मनुष्य मीठा लगता है।
बनाता है। बर्फ खरीदने वाला पैसे का पानी 79) काल (मृत्यु) का कोई काल (समय) नहीं
बनाता है। होता।
मात्र अपच से ही पेट नही दुःखता है, 80) आप के पास क्या है ? इसका कोई मूल्य
ज्यादातर पड़ोसी के सुख को देखकर नहीं, आप क्या हैं? इसका अधिक मूल्य
दुःखता है।
93) शान्ति समान तप नहीं, सन्तोष समान सुख 81) धर्म, व्यक्ति का उसके ईश्वर से रिश्ते का नाम
नहीं, तृष्णा समान रोग नही, दया समान है, यह तो व्यक्ति की निजी सम्पत्ति है, इसे
धर्म नहीं। बाँटा नहीं जा सकता । किन्ही भी दो व्यक्तियों
94) सद्गुरुदेव अपने श्रद्धालु को धनवान ही . का धर्म एकसा नहीं हो सकता, समूह में तो
नहीं, धर्मवान प्रथम देखना चाहते है, संभव ही नहीं है, यह भी विचारणीय है कि
सेठ नहीं श्रेष्ठ देखना चाहते है। आत्मा के धरातल पर तो सब एक ही है। अतः
95) जीवन में संतोष सादगी व संयम होगा तो धर्म धरातल पर तो सभी समान है।
ही शान्ति मिलेगी। आलस्य, अज्ञान व अन्ध श्रद्धा, इन तीनों
96) दुनिया में दुःख बढ़ा हो ऐसी बात नहीं है, से बचो।
असली बात तो यह है कि सहन शक्ति 83) धर्म सुनो भले ही मात्र दो घड़ी, परन्तु
घटी है। याद रखो हर घड़ी।
97) सम्पत्ति से प्रसिद्धि व समृद्धि मिल सकती 84) लोग दुनिया में अहम से मरते है, या वहम
है, परन्तु शान्ति तो सद्बुद्धि से ही मिल से मरते है ?
सकती है।
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82)
आलस