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________________ लोहा पिघल जाता हो, आश्चर्य....ऐसी भट्ठी की भीषण गर्मी में यदि उस नैरियक जीव को रख दिया जाये तो, गहरी नींद आजावेगी । परम शीतलता का मानो अनुभव हो रहा हो । टाटा की भट्टी से अनंत गुणी गरमी है वहां जीवाभिगम 59) परम शांति कहां पर है ? परमाधामी देवो का मुख्य काम क्या है ? नारकी के जीवों को और अधिक दुःखी करना । क्षेत्र वेदना से तो वे दुःखी है ही। परकृत वेदना से और भयंकर दुःखी होते है। सार..... अन्य को सताना, परितापित करना, खेदित करना, शोक पहुँचाना, भयभीत रखना आदि मिथ्यादृष्टि के लक्षण है। आपको पता होगा या न होगा, परन्तु परमाधामी व किल्विषी (निंदक) देव नियमतः मिथ्यादृष्टि ही होते है। हमारे में भी यदि अन्यों को दुःख देने मे आनंद व निंदा करने में आनंद मानने की शर्त है तो .....गया जन्म हाथ से हार....हार.....हार चिन्तन 60) शीत वेदना सबसे अधिक भयानक एक से तीन नारकी में उष्ण वेदना होती है । चार, पांच में उष्ण व शीत दोनों वेदना होती है । छट्ठी व सातवीं में शीत वेदना होती है । हिमालय पर्वत पर भी उस शीत वेदना वाले नैरियक को सुलादे तो शांति से नींद आजावे, यहाँ की ठण्ड से नारकी में अनंत गुणी ठंड है। व्यवहार में भी उष्ण वेदना से शीत वेदना भयंकर कही गई है। जीवाभिगम "गर्मी जावे मुट्ठी जीरा से ठंडी नही जावे मुट्ठी हीरा से" (कहावत) 61) तिर्यञ्चों में भी विनय व्यवहार, परन्तु मानव क्यों भूला आचार व्यवहारों के अनेक प्रकार में विनय व्यवहार भी एक माना है । सत्कार सन्मान, छोटे बड़े का भेद, बड़े के आने पर खडे होना, अभिवादन , नमन आसन देना, लेने, छोड़ने जाना, ये सभ्य व्यवहार देवताओं, मानवों मे तो होते ही है। अरे आश्चर्य तो है ! सन्नी तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय जीव भी परस्पर विनय व्यवहार करते है - लेने जाना, छोड़ने जाना, दोनों हाथ जोडना, है ना ? तिर्यञ्च का सभ्य व्यवहार परन्तु आज का आदमी इन विनय व्यवहारो को भूलता जा रहा है । क्यों ? भग. श. 14 उ.3 62) आपको उन्माद है क्या ? उन्माद - योग्य, अयोग्य का विवेक गुमा देना । मन काबू से बाहर होना । उन्माद के दो प्रकार : 1) यक्षका उन्माद 2) मोह का उन्माद यक्ष भूत - प्रेत आदि का उन्माद तो मनुष्य क्या, पृथ्वी पति आदि पर हो सकता है, और वापिस सुख से निकाला जा सकता है, . परन्तु महा भयंकर उन्माद है मोह का, जिसको निकालने का कार्य साधारण नही, असाधारण है, महा मेहनत व जिनशासन की साधना से ही इससे छुटकारा हो सकता हैं। भग.श 1. उ7 63) देव, पत्थर में प्रवेश करता है क्या ? हां, देव पत्थर में प्रवेश कर सकते है | पत्थर चलने लगता है, वनस्पति के रंग बदलने लगते हैं। जैसे टी.वी का रिमोट कंट्रोल आपके हाथ में है, वैसे ही पुद्गल पर देव अपना असर बता सकते हैं। भग सूत्र.13 उ7
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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