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________________ 52) साधन अनंत, बिना समझ, नही अन्त क्षण मात्र की भूख सहन करने से जितने कर्म मेरु पर्वत जितने औघे पात्र, भण्डोपकरण, क्षय करते हैं, उतनी निर्जरा नारकी के जीव मुहपत्ती आदि धारण कर लिए, अनंत वार 100-वर्ष में भी नहीं करते है । अणगार एक नवग्रैवेयक देव लोक में जा चुका है, द्रव्य उपवास में जितने कर्म का क्षय करते है, नारकी चारित्र का पालन उच्च कोटि कर चुका है। जीव एक हजार वर्ष में भी नहीं कर सकते है । इन सब का फल क्या मिला? नवग्रैवेयक व साधु एक छट्ट की तप से जितनी निर्जरा करते नीचे के देवों का सुख बस । मोक्ष मार्ग प्रयाण है, उतनी नारकी जीव 1 लाख वर्ष में भी नहीं नहीं | कारण : आत्मिक लक्ष्य के बिना नही कर सकते है । नारकी जीवों के कर्म चिकने होते होता संसार सागर पार । है । अणगार भगवंत के कर्म लूखे होते है, पन्नवणा पद 15 नारकी परवश आहार छोड़ता है। मुनि भगवंत 53) ज्वार-भाटा क्यों? स्वाधीनता से आहार छोड़ते हैं । भग.श 16 उ० 4 लवण समुद्र के चारों दिशाओं में चार मोटे पाताल कलश है। गहराई 1,00,000 योजन 56) परमाधामी क्या करते हैं? है। 1 लाख का कलश, नीचे चौडाई दस नारकी में दस प्रकार की क्षेत्र वेदना तो होती हजार, ऊपर का मुँह दस हजार योजन । है। साथ 1 से 3 नारकी में असंख्य परमाधामी बीच में चौडाइ 1 लाख योजन | कुल 4 बड़े (असुरकुमार के सदस्य) देव उन असंख्य कलश है। घडे भी करीब करीब हजार योजन नारकी के जीवों को वेदना, उनके पाप याद के है । नीचे वाय, बीच में पानी - हवा तथा करा करा कर देते है। ऊपर पानी । ऐसे तीन हिस्से है। अमावस्या, परमाधामी देवो से भी नारकी जीव ज्यादा होते पूर्णिमा चौदस, अष्टमी इन विशेष तिथि के है। कभी कभी तो नारकी जीव मिलकर उस दिन वायु काय के जीवों की बढ़ोतरी व वैक्रिय देव को भी परितापना दे देते है। परन्तु अन्त में होने से ज्वार तथा घटने पर भाटा होता है। तो नारकी जीवों की ही दयनीय दशा होती है। ये चारों पाताल कलश शाश्वत है। परमाधामी से भी पहली नारकी के जीव की ठाणाग सूत्र 4था ठाणा संख्या ज्यादा होती है । 54) भावना से बंधन व मुक्ति भग. श. 8 उ.6 संसारी आत्मा आठ कर्मों से बंधी है । जिस | 57) भूख - प्यास कितनी है, जीवों की? समय जैसा भाव परिणाम होता है, उसीके जिस प्रकार भस्मक रोगी को जितना भी अनुसार कर्म बंध होता है । प्रतिक्षण सात खिलाया जाय, सब भस्म हो जाता है। उसी कर्म बंधते है। आयष्य कर्म जीवों में एक बार प्रकार नारकी में महा भस्मक, रोग हो मानो, (एक भव में) ही बंधता है। एक समय में बांधे आश्चर्य यह है कि, संसार का सभी पानी कर्म रज को यदि गिनना चाहे तो अनंतानंत पिलावे व अन्न खिलावे तो भी उसकी प्यास व की संख्या होगी । “परिणामो बंध" भूख नहीं मिटती है । सदैव भूख व प्यास से उत्तरा. 33 पीड़ित ही रहते है वे । 55) अल्प वेदना - महानिर्जरा, महावेदना - जीवाभिगम सूत्र अल्पनिर्जरा 58) अग्नि की भूमि में शांति से नींद आजावे नारकी जीव वेदना अधिक भोगते है । परन्तु टाटा व भिलाई के कारखानों की बड़ी बड़ी निर्जरा बहुत कम करते हैं । अणगार भगवंत । लौह गलाने वाली भट्टियां, जहाँ क्षण मात्र में
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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