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45 ) " न खाया, न भोगा, फिर भी नरक गया”
मच्छ है, नाम तंदुल मच्छ | चावल के दाने जितना ही शरीर : अतः नाम पड़ा "तंदुल
मच्छ"
व्हेल मछली के भी भोपड़ों पर बैठा सोचता है कि सैकड़ो मछलिएँ मुँह से निकल रही है, आ जा रही है । वह सोचता है कि यदि इस जगह मैं होता, तो एक भी मछली को जिन्दा नहीं छोड़ता । कुल मुहुर्त प्रमाण भी उम्र नही है, उस तंदुल मच्छ की, उस क्रुर परिणाम में मरकर 33 सागरोपन की उम्र वाला सातवीं नरक का नैरियक बनता है । न खाया, न भोगा, फिर भी नरक, यानि अशुभ भावों का चमत्कार |
46) एक वर्षा से दस हजार वर्ष तक सरसता चार मेघ (बादल) के प्रकार होते है । 1. पुष्करावर्त मेघ एक वर्षा से 10,000 वर्ष तक धरती में सरसता बनी रहती है ।
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2. प्रद्युम्न मेघ : एक वर्षा से 1000 वर्ष तक धरती में सरसता बनी रहती है । 3. जीमूत एक वर्षा से 100 वर्ष तक, 4. जिम्ह: ऐसा मेघ जिसके बरसने पर भी फसल हो या ना भी होवे । पुष्करावर्त मेघ के समान तीर्थंकर ज्ञान वर्षा द्वारा सैंकड़ो, हजारो वर्ष तक जीवों का कल्याण करते रहते हैं ।
ठाणांग सूत्र 4था ठाणा
47) एक मिनट के भोग के पीछे, दुःख 87673411 पल्योपम प्रमाण,
एक वैरागी की कथा नाम संभूत, बना मुनि, नियाणा कर बैठा बना ब्रह्मदत्त चक्री, भोगों मे डूबा, कुल सात सौ वर्ष का भौतिक भोग भोगा, मरकर सातवीं नरक में 33 सागर का नैरियक बना, सार 1 मिनट प्रमाण ब्रह्मदत्त चक्री का भोग के बदले में सातवी नरक में
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89693411 पल्योपम प्रमाण दुःख भोग रहा है । सुख थोड़ा, दुःख घणा । उत्तरा 13 वाँ अ. 48) एक मिनट के संयम के बदले सर्वार्थ सिद्ध - 8387684829 पल्योपम का सुख
एक था अणगार, नाम था धन्ना, संयम का वरण, उग्र तपस्वी महावीर ने “तवे सूरा” अणगारों में प्रधान धन्ना मुनि को माना, कुल नव मास का संयम पर्याय में सर्वार्थ सिद्ध विमान
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• एक भवावतारी बन गया. 1 मिनट के संयम पर्याय से सर्वार्थ सिद्ध विमान देव का 8387684829 पल्योपम प्रमाण सुख। कुल 33 सागरोपम पा गया । धन्य है, धन्ना अणगार को अणुत्तरोववाई सूत्र
49 ) जीव के माँ का घर कौन सा ?
अव्यवहार राशि में निगोद पर्याय (तिर्यञ्चगति) में अनंता अनंत काल वही रहा था। माता का घर अव्यवहार राशि मे निगोद पर्याय थी ।
50) “सिद्ध बनने का पास पोर्ट समकित "
सम्यक्त्व प्राप्ति के बाद देशोन अर्द्ध पुद्गल परावर्तन काल में जीव नियमा सिद्ध बनता है । एक जीव प्रथम बार समकिती बनने के अन्तः मुहुर्त में भी सिद्ध बन जाता है। इस . में काल व पुरुषार्थ दोनों अपेक्षित है ।
पण्णवणापद 18
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51) डॉ. का डॉ. हरिणगमैषी देव
शक्रेन्द्र महाराज का दूत जिसे हरिणगमैषी देव भी कहते है । शक्रेन्द्र आज्ञा प्राप्त होते ही ऐसा ऑपरेशन अन्तर मुहुर्त में कर देता है "गर्भ हरण" । अन्य माता का गर्भ का बदलाव करना । बिना पेट के चीर, फाड़, ऐसा ऑपरेशन कि बिना किसी को पीड़ा पहुँचाये, वेदना भी न होने देवे, और आज का आधुनिक डॉ बनने से पहले कितनी पंचेन्द्रिय हत्या कर चुका होता है । भग श 5 3.4