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गर्भ में जीव मनुष्याणी के शरीर में जघन्य अन्तर मुहुर्त उत्कृष्ट चौबीस वर्ष रह सकता है ।
तिर्यञ्चाणी के शरीर मे सोलह वर्ष रह सकता है, और आश्चर्य यह है कि, एक बालक के प्रत्येक सौ (200 से 900 पिता हो सकते हैं, और एक पिता के उत्कृष्ट प्रत्येक लाख (2 से 9 लाख) पुत्र हो सकते हैं ।
भग. श. 1
39) आश्चर्य (अच्छेरा)
आश्चर्य का अर्थ जो घटना अनंत काल बाद घटती हो। अतः अनहोनी नही कहना, भूतकाल में अनंत तीर्थंकर मल्लि भगवती की तरह स्त्रीलिंग रूप में सिद्ध हुए है । ठाणांग सूत्र 10 (2) 40) एक पल्योपम में असंख्य वासुदेव :
तीन खण्ड के अधिपति वासुदेव नरक में ही •जाते हैं । अरे ! आश्चर्य यह है प्रत्येक पल्योपम काल में असंख्य-साधु, संयम की कमाई से प्रचण्ड पुण्य इकट्ठे करके भी सजगता के अभाव . में निदान करके नरक गति में चले जाते है, और नरक की वेदना भोगते है ।
ठाणांग सूत्र
41) वज्र की कलम रत्नों के कागज
वर्तमान समय में कागज की किताबों का भण्डार भरा है। मनुष्य लोक में तो किताब है, परन्तु देवलोक में भी पुस्तक रत्न होता है । आश्चर्य, उस पुस्तक रत्न के पुट्टे रिष्ट रत्न के बंधन, सोने के धागे से, और कागज अंक रत्न के होते है, रिष्ट रत्न की स्याही और वज्र की कलम, रिष्ट रत्न के अक्षर और " पुस्तक रत्न" शाश्वत होता है ।
जीवाभिगम सूत्र
42) एक मुहुर्त में चार गति का भ्रमण क्या ? एक मुहुर्त में चारों गतिकी स्पर्शना
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जीव कर सकता है ? हां कर सकता है, कैसे ? कल्पना से समझे, इस प्रकार 7 वी नारकी भव का 2 मिनट - ( अन्तिम ) यहाँ से काल करके तिर्यञ्च सन्नी के भव में 4.5 मिनट पर मनुष्य का भव 4-5 मिनट फिर तिर्यञ्च योनी में सन्नी का भव में 4-5 मिनट और फिर वहाँ से 8वां देवलोक में इस प्रकार एक मुहुर्त में
(48 मिनट) में 5 भवों में चार गति का स्पर्श हुआ ।
यहाँ (आयु) 48 मिनट के समय के आधार पर चार गति का स्पर्श हुआ, ऐसा बताया गया है । नारकी और देव भव के 2-2 मिनट लिए ऐसा समझना। पूरे भव का घाल नही । भग. सू. 24 43) कितनी आयु वाला नरक देव मे जावें
सन्नी तिर्यञ्च अन्तर्मुहुर्त की उम्रवाला सातवीं नरक में जाता है, परन्तु मनुष्य अन्तरमुहुर्त में नही जाता है, कम से कम प्रत्येक मास, (7-8) मास वाला ही प्रथम नरक में भवनपति देव, वाणव्यंतर में जाता है। एक से ऊपर की नरक व ऊपर के देवों में जाने के लिए प्रत्येक वर्ष की उम्र होना मनुष्य के लिए आवश्यक है, कहाँ अन्तर मुहुर्त कहाँ प्रत्येक वर्ष तिर्यञ्च व मनुष्य में अन्तर ।
भग. श. 24
44) आँख व कान से भी सुना जा सकता है, क्या ?
आत्मा के पास अद्भूत शक्तियां है । कितनी शक्तियें लब्धिओं से उत्पन्न होती है, ऐसी ही एक लब्धि है, संभिन्न श्रोत लब्धि कान से सुनना, ये सभी जानते है, मानते है, परन्तु नाक, आँख, जीभ से सुना जाता हो, ऐसा सुना कभी क्या ? हाँ संमिन्न श्रोत लब्धि धारी साधक किसी भी इन्द्रिय से सुन सकता है ।
उववाई सूत्र