SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रत्येक वनस्पति 32000 करते है। आत्म प्रदेश गले के उपर भाग से - गति - हाय ! कैसी है दयनीय दशा ? “देव" सर्व अंग मे से एक साथ निकलने वाला - 31) दुल्लहे खलु माणुसे भवे “जीव मोक्ष गति मे जाता है" दुर्लभ है मनुष्य का भव ! आगम वाणी मनुष्य के ठाणांग सूत्र. स्थान 5 मूल्य को समझाती है। मानव भव की एक मिनिट 35) अपार वैभव में नही सार बराबर असंख्य मिनट नारकी, असंख्य देव की व छह खण्ड, नव निधि 14 रत्नों का स्वामी, अनंत मिनिट तिर्यञ्च की पर्याय में मिलती है। सोलह हजार देव आधीन, ऐसा नरदेव जिसे एवरेज कुल मिलाकर ऐसा माना है। चक्रवर्ती कहते हैं, अपार वैभव में भी सार - भग.श.1 संचिट्ठण नही लगता, तब संयम जीवन धारण कर 32) साढ़े चार मिनट का आयुष्य कम होने से भव पार करते है। चार अनुत्तर विमान वासी देवों मे ऐसे देव है, "जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति" जिनको लवसप्तम देव के नाम से पुकारा 36) चक्रवर्ती का चक्र रत्न जाता है। क्यों? पूर्व अणगार धर्म की आराधना चक्रवर्ती बनोगे एसा भावी संकेत देने वाला, करते करते अनंत अनंत कर्म वर्गणा का क्षय 14 रत्नों में प्रधान रत्न "चक्र रत्न" - रथ के करते हैं। परन्त सात लव (लगभग 4 1/2 पहिए जैसा होता है । उसकी नाभि में वज्र मिनट) जितना और संयम का समय लम्बा और लोहिताक्ष रत्न के परिधि जाबूनंद रत्न होता तो सिद्ध भगवंत बन जाते । केवल सात की, 1000 देव उसकी सेवा मे रहते है । लव आयुष्य कम था । सात लव कम समय चक्रवर्ती के कुल के सिवाय अन्य किसी पर भी ।। का फल .... एक भवावतारी बन गए। छोडने पर उसका मस्तक छेदन करके ही आता है। आकाश में चलने वाला रत्न - छह भग.श.सूत्र. 6 खण्ड साधने का मार्ग बताता है। 33) एक किनारे से दूसरा किनारा “जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति" जीव व जड़ में कितनी शक्ति है । दोनों 1 | 37) शक्रेन्द्र एक भव में असंख्य तीर्थंकरो का समय में 14 राजु लोक (असंख्य योजन रूप) जन्माभिषेक करता है। को इस किनारे से उस किनारे तक गति करते तीर्थंकर नाम कर्म के उदय वाली आत्मा का है। परमाणु भी एक समय में असंख्य योजन 64 इन्द्र मेरु पर्वत के पण्डग वन पर (14 राजु लोक) को पार कर लेता है। जन्माभिषेक करते है। आश्चर्य ! एक शकेन्द्र भगवती सूत्र महाराज अपने एक भव में असंख्य तीर्थंकरो 34) जीव कहाँ जाता है ? किस तरह ? का जन्माभिषेक करते है। मृत्यु के समय जीव के निकलने को निर्याण “जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति" मार्ग (5) माने गये है। 38) एक पिता के कितने पुत्र? एक पुत्र के कितने पिता? आत्म प्रदेश पैर से निकलते है - गति - "नरक" आत्म प्रदेश कमर से निकलते है - गति - है ना सवाल ? "तिर्यञ्च" सर्वज्ञों का ज्ञान एक्सरे से भी अधिक सूक्ष्म आत्म प्रदेश छाती के भाग से - गति - “मनुष्य", अवगाहक ज्ञान है। 34
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy