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________________ 180) सफलता नहीं मिलती तो बाधा नही, परन्तु | 195) रूप से धन अधिक शक्तिशाली है। सफलता की बात करो । निष्फलता की बात 196) मकान किराये से देने के बदले, उसको या, निष्फलता के विचार कभी न करो। खाली रहने दो। 181) बहुत बार उतावल के कारण बहुत देर हो 197) खाली बरतन आवाज अधिक करते हैं। जाती है। 198) बिना मेहनत से आया धन त्वरित गति से 182) सुख छिछला होता है, दुःख गहरा होता चला जाता है। 199) स्वयं की गली में कुत्ता भी शेर होता है । 183) एक बार अन्तरात्मा को बेचने के बाद किसी भी कीमत पर खरीदी नहीं जा सकती है। 200) सब का काम, किसी का भी काम नहीं ? 184) मीठा बोलने वाला तुम्हारा मित्र नहीं । 201) महापुरुषों की सन्ताने महापुरुष नहीं हो सकती है । (सामान्यतः) 185) तुम्हारी “चाहत” मुजब नहि, परन्तु “लायकात” मुजब ही मिलेगा। 202) जवानी और वृद्धावस्था कभी भी सम्मत 186) समुन्दर में तूफान के समय जहाज को नही होते है । (एक अपेक्षा से)। किसी तरह बंदरगाह पर ले जावो। 203) "स्त्री" ये जरुरी अनिष्ट है । (दृष्टिविकार) 187) कई माता-पिता बालकों को संस्कारित नही 204) छोटी गलती के प्रति आँख, कान बंद करते, मात्र उनको मोटा (बड़ा) ही करते करो। 205) जो तुम्हारे सामने आँख मिलाकर बात नही 188) मनुष्य को पहचानने के लिए या तो पथिक कर सकते है, उन पर विश्वास नही करना । . (साथ में मुसाफिरी करने वाला) या पड़ोसी । 206) जरुरत खड़ी हो, उससे पहले मित्र की 189) किसी को तुम आश्चर्य से मुग्ध करो,अर्थात् मित्रता की सच्चाई देख लो। आधा तो उसको जीत लिया । 207) अतिखुशामद व अति सम्मान से सावधान । 190) शौकीन पत्नी और पीछे का दरवाजा, धनिक 208) जितने ऊँचे चढ़ो, उतना ही गिरने का भय को गरीब बनाते है। (पत्नी खर्चकर - नौकर ज्यादा। चुराकर) 209) गहरा पानी शांत होता है । 191) लापरवाही से किया गया कार्य दो बार करना 210) धनिक मनुष्य में कोई दोष नही होता पड़ता हैं। है। (उसका दोष कोई देखता नही) 192) हँसमुख स्वभाव का मनुष्य अच्छा नौकर नही बन सकता है। 211) धन से कभी-कभी ही सुख मिलता है । 193) राह देखने वाले को चाहवाला पदार्थ मिल 212) एक झूठ अनेक झूठों को जन्म देता है। ही जाता है। 213) सिंहों के टोले कभी होते नहीं । 194) समय से पहले, और तकदीर में है, उस | 214) रोग और शत्रु प्रारम्भ से ही रोकना । से अधिक मिलेगा नही ।
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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