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________________ 149) प्रत्येक " सुबह " दिन का प्रवेशद्वार है, उसमें पहला कदम संभाल कर रखना । 150) उधार, आँसू की धार है । 151) बुरे विचारों के डिब्बे वाली गाड़ी में पटरियाँ नहीं होती हैं । 152 ) याद रखो, तुम तुम्हारे कुटुम्ब की जाहेरात (विज्ञापन) हो । 153) मात्र दोष को देखो, दोषी को नही, दोषी के प्रति भी रहम (दया) रखो। 154) जहाँ ज्यादा भय है, वहाँ गुलामी है । 155) तुम्हारे घर में धर्म का प्रवेश करवाओ, फिर धर्म तुम्हारे हृदय में प्रवेश करेगा । 156) हजार हाथ से अधिक एक मस्तिष्क का महत्व है । 157) वस्तु को इस तरह रखिए कि योग्य समय, योग्य स्थल और योग्य स्वरुप मे मिल जावे । 158) मात्र एक भूल, पूरा भव बिगाड़ सकती है । 159 ) प्रेम करो परन्तु फर्ज से । - 160) उतावल करो, परन्तु दौड़ा-दौड़ी मत करो । 161) ईर्ष्या को जलने (बढ़ने ) मत दो, नहीं तो जंगल में फैलते दव (आग) की तरह हो जावेगी | 162) स्वस्थ शरीर शुभ कर्मों की भेंट है, परन्तु उसकी सार-संभाल रखनी पड़ती है, तभी वह भेंट आकर्षक लगती है । 163) स्वर्ग आपके ऊपर नहीं है, आपके आसपास है, जिसको स्वयं बनाना पड़ता है । 164) बुद्धिमान मनुष्य अकस्मात को भी “अर्थ” देता/करता है । 165) मनुष्य का बड़े से बड़ा शत्रु है डर । 26 166) ईर्ष्या करने वाले, सबसे पहले अति नजदीकी रिश्तेदार ही होते है । 167) जिन्दगी में कितने ही प्रसंग सीखने के होते है, और कितने प्रसंग भूलने के होते है । 168) मकान मनुष्य के हाथों से बंधता है, परन्तु घर मनुष्य के हृदय से बनता है । 169 ) जो कुटुम्ब शाम को भोजन के बाद प्रार्थना करता है, वह कुटुम्ब साथ में रह सकता है । 170) प्रेम बिना का घर खड़े पर्वत के समान है । 171) जब जिन्दगी तुमको लात मारती है तब समझना चाहिए कि वह लात तुमको आगे बढ़ाने के लिए ही लगी है । 172) जिस घर परमेश्वर नही हो तो, वह • जल्दी गिर जाता है । 173) तुम्हारी जिन्दगी की पुस्तक के प्रथम प्रकरण का नाम होना चाहिए " प्रामाणिकता " || 174) अपना निर्णय स्नेह से न लो, परन्तु तर्क की कसौटी पर कस कर लो । 175) ऐसा धंधा न करो, जिससे कुटुम्ब की शांति का रक्षण करना पड़े । 176) कमजोर मनुष्य बहुत नीचे नमकर नमस्कार करते हैं । 177 ) लोगों में शक्ति का अभाव नही होता है, परन्तु इच्छा शक्ति का अभाव होता है । 178) वृद्धावस्था जीवन का बेलेन्स शीट निकालने का समय है । तुम ज्यादा फायदा / नफा मिलने के ऊपर ध्यान देना । 179) सफलता का ख्याल प्रत्येक मनुष्य में अलग अलग होता है, परन्तु उत्तम सफलता मानवता के क्षेत्र में होती है ।
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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