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________________ 119) जिन्दगी में 50% याद रखने का होता है, तथा 50% याद नहीं रखने का होता है । 120) निराशा वाले समय को भूल जाओ, परन्तु उस समय जो तुमने सीखा था, उसको मत भूलना । 121) "चेस की गेम" (शतरंज) जैसी जिन्दगी है, पहले से विचार किया होता, जीत अवश्य होती है । 122 ) प्रभु ! जिसके हाथ में फूल हो उसको कदाचित नहीं स्वीकार करेंगे परन्तु - भले ही खाली हाथ हो पवित्र हाथों को जरुर स्वीकारेंगे। 123) सच्चा सुख कार्य (do) से मिलता है, काम की चर्चा करने से नहीं । 124 ) ज्ञानी मनुष्य का सामान उसका पुस्तकालय है, पुस्तकें उसकी प्रजा है, और ज्ञान उसका राजा है । 125 ) जीवन में दौड़ (गति) से भी महत्व पूर्ण उसकी दिशा कौन सी है यह महत्व पूर्ण है । 126) मन का दरवाजा खोलने की एक चाबी है - सहानुभूति । 127) तुम्हारे प्रश्नों के उत्तर यदि मित्र के पास हों तो जरुर प्राप्त करो । 128) व्यक्तित्व रूपी भव्य महल की नींव है, "आत्म विश्वास" । 129) वृक्ष की तरह जमीन में कहीं भी जड़ें फैला दो । 130) जीभ से धीमा व देखने में त्वरित बनो । 131) तुम्हारी स्वयं की भूल कैसे उपयोगी होवे, उस पर विचार करो ? 132) प्रभु बिना का स्वर्ग भी नरक समान है । 25 133) व्यक्ति की पहचान, जवाब कैसे देता है ? उसके ऊपर नही की जाती है, बल्कि कितनी चातुर्यता से प्रश्न पूछता है, उससे होती है। सुख पैसे में नहीं, हृदय में खोजना चाहिए । घटना को बनाने वाले ज्यादातर हम स्वयं ही होते है । 134) 135) 136) कितने लोगों को पुस्तकें बसानी आती हैं, परन्तु वाचन करना नहीं आता । 137) आपके सच्चे साथी चार है। क्या कैसे, क्यों, किस तरह? जैसे प्रश्न । 138) मनुष्य को उसकी ऊंचाई से नही, उसकी गहराई (गुण) से जानो । 139) हेतु बिना का जीवन, सढ़ बिना का जहाज है । 140) मौका एक बार आपके दरवाजे पर खटखटाता है । 141) धीरज का वृक्ष होता है छोटा, परन्तु फल (होता) देता है मोटा | 142) समस्या रूपी नदी को पार करने का पुल है, बुद्धि पूर्वक आयोजन । 143) मुझे खबर है कि आनंद क्या है ? क्योंकि मैं दुःख रूपी भट्टी में परिपक्व बन गया हूँ । 144 ) तुम्हारे मन को 100% खाली रखो । 145) सफलता और निष्फलता तुम्हारे मन में ही रही हुई है। 146) पैसा स्वयं नही, बल्कि पैसे का विचार, मनुष्य को बर्बाद कर देता है । 147) वृक्ष के ऊपर फल नही है, तो उसको हिलाने से क्या अर्थ है । 148) सत्य प्रश्नों के उत्तर भी सत्य ही होते है ।
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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