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________________ 93) कई बार अच्छी तरह शुरु किया हुआ कार्य खराब रूप में समाप्त होता है, और अव्यवस्थित तरह से शुरु किया हुआ कार्य सुन्दर तरीके से पूरा होता है । 94) दुःख आता है, तब आत्मा में रहो, परन्तु सुख आता है, तब आनंद को काबू में रखो। 95) ज्यादा मानसिक दबाव और ज्यादा परिस्थिति को खराब करता है । 96) मूर्ख के साथ दलीलें मत दो, लोग तुमको भी वैसा ही मानने लगेंगे । 97) जितनी आवक ज्यादा, उतनी जरुरत (इच्छाएँ) ज्यादा | 98) मुश्किलों से दूर न भागो, उसका सामना करो, आश्चर्य रूप से अन्त हो जावेगा । 99 ) स्वप्न में दिखने वाले हजार रुपये से भी, जेब में रखा हुआ रुपया ज्यादा कीमती है । 100) मन की निर्मलता हृदय को शुद्ध करती है और जीवन को भी शुद्ध करती है । 101) आप भले ही भेड़ की तरह रहो, परन्तु विचार घोड़े की तरह रखो । 102) तुम्हारा मक्कम ( मजबूत) मन, तुम्हारा ध्रुव तारा है । 103) अज्ञानी को दो बार समझाना पड़ता है, अभिमानी को तीन बार । परन्तु 104) प्रथम प्रयत्न करने वाले को मोती मिलता है, देर से प्रयत्न करने वाले को सीप । 105) सुनकर सीखो, परन्तु समझो मनन करके । 106) पैसा यदि गुमा दिया कुछ नहीं गवायाँ । परन्तु आत्म विश्वास गुमाया तो सब कुछ गँवा दिया । 24 107 ) निश्चय यह कमजोर मन वाले की दवा है। 108) विजय मिलती हो तब भविष्य की हार की चिन्ता नहीं करनी चाहिए। कारण कि चिंता अभी के विजय के आनंद को समाप्त कर देगी । 109) स्वप्न को सत्य करने का उपाय है, स्वप्न से जागना । 110) जहाज बंदरगाहों में सुरक्षित रहते हों, परन्तु उसका तैरना तो खुले समुद्र में । 111 ) मनुष्य का मन पैराशूट जैसा है, उसके संपूर्ण खुलने पर ही व्यक्ति के लिए मदद रूप हो सकता I 112) यदि तुम्हे विजय रूप मधु को चखना है तो, मुश्किल रुप मधुमक्खियों के डंक खाने ही पड़ेंगे । 113) असामान्य सिद्धि प्राप्त करने हेतु, असामान्य संजोगो की राह न देखो। सामान्य संयोगो का उपयोग करो । 114) योग्य समय का अयोग्य निर्णय और योग्य निर्णय का अयोग्य समय दोनो समान रूप से हानिकर हैं । 115) सच्चा मनुष्य वही है जो, दूसरो के दोष नहीं परन्तु स्वयं के दोष जरुर देखता है । 116) दूसरो के बूट में, तुम्हारे पैर रख के देखो ( सामने के मनुष्य की दृष्टि बिन्दु से देखना) 117) शरीर की मशीन को हास्य रूपी ईंधन की जरुरत पड़ती है, जिससे जीवन सरलता से चल सके । 118) पहले खुद खराब आदत को डालता है, बाद में आदत मनुष्य को नीचे डालती (गिराती) है ।
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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