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________________ 215) मुश्किल में लोग सलाह देंगे, परन्तु मदद | 229) दुसरे की गुप्त बात, जो तुमको कहता है, नहीं। उसको तुम्हारी गुप्त बात न कहो । 216) छोटा रास्ता (सरल) हमेशा लम्बा (मुसीबत) | 230) तुम्हारे पास नही है, उसका उद्वेग न करके, साबित होता है। जो है, उसमे सन्तोष करो। 217) जिस कार्य के लिए जितना बड़ा अर्थ इकट्ठा 231) अंधेरी रात बीतने के बाद प्रभात होता ही किया हो, अर्थ कम होगा, परन्तु कार्य पूरा नही होगा। 232) तुम सच्चे हो, यह साबित करने की कोशीश 218) छोटी दिखने वाली समस्याओं के पीछे बड़ी करना नहीं | क्योंकि सत्य को साबित समस्याएँ छिपी रहती है। करने की आवश्यकता नहीं होती। 219) जरुरत की वस्तु के विषय मे लम्बा विचार | 233) बहुत बार छोटी वस्तु का महत्व बहुत होता करोगे, तुम्हे जरुरत जरुरी नहीं लगेगी। 220) भूतकाल हमेशा भव्य ही लगता है। 234) जो तुम मीठा न बोल सको, तो मत बोलना। 221) जो लोग काम कर सकते है: वे काम करते है, जो नही कर सकते है, वे सलाह देते | 235) जो काम आज हो सकता है, उसे कल के भरोसे मत छोड़ना। 222) जीवन के दो उद्देश्य होने चाहिए । 236) बोलने मे उतावली करना नही, धीरे व मीठा बोलो। 1) जो चाहिए, उसको प्राप्त करना । 237) आयोजन का अभाव ये निष्फलता का 2) जो प्राप्त हुआ, उसका उपयोग करना । आयोजन है। 223) जैसे ही आवक बढ़ेगी, वैसे ही और तेज 238) जो तुम भूल नही करोगे। तो सीखोगे नही । गति से खर्च बढ़ेगा। 239) किसी कागज पर हस्ताक्षर करने से पहले 224) कार्य पूरा करने के लिए मिला हुआ समय अच्छी तरह सोचो। मुजब काम की व्यस्तता व्यापकता भी बढ़ती 240) यदि दूसरे के धन पर ईर्ष्या नही करोगे तो धन मिलेगा। 225) सलाह लेनी हो तो वृद्ध के पास जावो । यदि काम करवाना हो तो जवान के पास 241) जो सुना, उसका भरोसा रखना मत । जाओ। 242) मन को हमेशा खुला रखो । 226) बीज को संचय करके रखोगे, वह नाश को 243) दूसरों के झगड़ों में सिर नही खपाना । प्राप्त होगा, यदि बोवोगे तो अनेक गुणा 244) दुर्गुण बिना के मनुष्य मिलने कठिन है। बनेगा। 245) मित्रता समान से होती है। 227) मौका उसी को मिलता है जो उसका उपयोग 246) बहुत बार छोटा मित्र बहुत काम आता है । करने को तैयार रहता है। 247) बल से अधिक भलमनसाई ज्यादा 228) प्रगति के लिए परिवर्तन जरुरी है। असरकारक होती है। है।
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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