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________________ पाटि ( नीति के अनमोल बोल ) देता हो, वह विश्वसनीय नही माना जाएगा। 15) जब सब कुछ गुमा दो तब इतना ध्यान रखना 1) गुस्सा करने में जल्दी न करो, देर करो । कि अभी भविष्य तो बचा है ना ? 2) खराब संगत की अपेक्षा अकेले रहना अच्छा | 16) पैसे पैसे के लिए खोटी कंजूसी न करो, ऐसी बचत से तुम्हारी पूंजी में वृद्धि नहीं 3) छोटी-छोटी सी बात के लिए कोर्ट का आश्रय होगी। न लो। 17) 'करता होय सो कीजिए, जिस वस्तु में 4) दलीले सामने के व्यक्ति को चुप कर सकती तुम्हारी चोंच न डूबती हो, उस में दिमाग न हैं, जीत नहीं सकती हैं । ऐसे सूत्रों को लगावो, समय न खराब करो । त्वरितगति से न पढ़ा जाना चाहिए। 18) किसी काम में ज्यादा हाथ सुहावणा नही खराब करने की अपेक्षा, न करना ज्यादा "ज्यादा हाथ अलखावणा" अच्छा है। 19) उपयोग में आवे ऐसी ही वस्तु खरीदे । 6) मूर्ख मित्र की अपेक्षा, बुद्धिमान शत्रु अच्छा 20) अपनी पत्नी का जन्म दिन न भूलो । 21) किसी का हृदय जीतना है तो पहले उसकी 7) स्त्री को खुश करना बहुत ही मुश्किल भूख मिटाओ । (उसका पेट भरो) 22) किसी को एक महीने बाद का वायदा मत 8) रंग रोगन होने के बाद डब्बे घर में मत रखो, करो। भले आधा बचा हो । बाद में काम नही 23) जन्म से स्त्री प्रेम (ममता) दात्री का ही रूप है। .. आएगा। संग्रह किया सांप भी काम आता हैं यह कहावत 24) महंगी वस्तु न खरीद सको तो कोई बात नहीं, मत खरीदो । परन्तु सस्ती के चक्कर में पुरानी हो गई। कभी काम आएगा, ऐसा सोचकर छोटी छोटी चीजों का संग्रह न करो, ज्यादा नुकसान उठा बैठोग। जब जरूरत पड़े तो खरीद लो । 25) किसी को वचन दो तो निभाओ, ऐसा वचन मत दो, जो निभा न सको । 10) धीरे बोलो, धीमे बोलो, थोड़ा बोलो। 11) लम्बे प्रवचन बोल कर लोगों को बैचेन बनाने 26) समृद्धि के समय में बहुत लोग मित्र बनने आते है, विपत्ति के समय उन सब की कसौटी जैसा है | विषय तथा उत्तम - मुद्दा सहित होती है। सीमित शब्दों का असर अच्छा होता हैं। 12) तुम्हारे जेब में हाथ रखकर तुम सफलता की 27) जब मुसीबत में हो, तब भी सत्य ही बोलना । सीढ़ी कभी नहीं चढ़ सकोगे । 28) जब सभी के विचार (मत) समान होते है, 13) कोई भी आदत को यदि रोकने में नहीं आई तब कोई विचार नहीं करता है । तो आगे वह जरुरत बन जाएगी । 29) सुख ये "बहुत ज्यादा" और "बहुत कम" 14) जो व्यक्ति अपने व्यवसाय पर ध्यान नही इन दोनों के बीच का बिंदु हैं सोच !
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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