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________________ सहारा बन कर जैन उपाश्रय ले जाना शायद थोड़ा सा तेरा कर्ज थोड़ा सा तेरा फर्ज पूरा होगा । 15) माँ - बाप को सोने से न मढ़ो, चलेगा, हीरे से न जड़ो, तो चलेगा, पर उनका जिगर जले और अन्तर आँसू बहाए वो कैसे चलेगा ? 16) माँ और क्षमा दोनों एक है, क्योंकि माफ करने में दोनों नेक है । 17) माँ-बाप की आँखों मे दो बार आँसू आते है लड़की घर छोड़े तब लड़का मुँह मोड़े तब । 18) जिस बेटे के जन्म पर माँ बाप ने हँसी-खुशी से मिठाई बाँटी वही बेटे जवान होकर काना फूसी से माँ-बाप को बाँटे, हाय ! कैसी करुणता ? 19) सुविधा के लिए जुदा होना पड़े . उसमें कोई हर्ज नहीं है । किन्तु स्वभाव के कारण जुदा होना वो तो सबसे बड़ी शर्म है । 20) माँ-बाप की सच्ची विरासत पैसा और प्रासाद नही, प्रामाणिकता और पवित्रता है । 21) बचपन में जिसने तुझको पाला बुढ़ापे में उनको तूने नहीं संभाला तो याद रखना तेरे भाग्य में भड़केगी ज्वाला । 22) चार वर्ष का तेरा लाडला जो तेरे प्रेम की प्यास रखे, तो पचास वर्ष के तेरे माँ-बाप, तेरे प्रेम की आशा क्यों न रखे ? बचपन में गोद देने वाली को बुढ़ापे में दगा देने वाला मत बनना ! 13 23) घर में वृद्ध माँ-बाप से बोले नहीं उनको संभाले नहीं और वृद्धाश्रम में दान करे जीव दया में धन दान करे । उसे दयालु कहना... वो दया का अपमान ही है ? 24) घर की माँ को सताए ... और मन्दिर की माँ को चुनरी ओढ़ाए, याद रखना माँ तुझ पर खुश तो नही शायद खफा जरूर होगी, 25) जिस मुन्ने को माँ-बाप ने बोलना सिखाया था, वह मुन्ना बड़ा होकर, माँ-बाप को मौन रहना सिखाता है । 26) जिस दिन तुम्हारे कारण माँ-बाप की आँखों में आँसू आते है, याद रखना, उस दिन तुम्हारा किया सारा धर्म आँसू में बह जाता है ! 27) पेट में पाँच बेटे जिसको भारी नहीं लगे थे वो माँ आज पाँच बेटो के पाँच फ्लैटों में भारी लग रही है ? बीते जमाने का, यह श्रवण का देश कौन मानेगा ? 28) पत्नी पसंद से मिल सकती है, लेकिन माँ तो पुण्य से ही मिलती है । पसंद से मिलने वाली के लिए पुण्य से मिलने वाली माँ को मत ठुकराना । 29) कबूतर को दाना डालने वाला बेटा अगर माँबापको दबाए तो उसके दानो मे कोई दम नहीं 30) दूध तो गाय का, फूल तो जाई का, और प्यार तो माई का ! "माँ" घर का प्राण है 31) जीवन के अंधेरे पथ में सूरज बनकर रोशनी करने वाले माँ-बाप की जिन्दगी में अंधकार मत फैलाना ।
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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