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संसार में क्या करना 1. क्या करना ? What to do? 2. किस कारण करना? Why to do? 3. किस प्रकार करना ? How to do? 4. मै तेरा हूं - यह ज्ञान 5. मै उस का हूँ - यह दर्शन 6. मैं व तूं दोनों एक ही है - चारित्र
स्त्रियों के स्वयं के गाल पर लगाने का सरस व उत्तम रंग कौन सा ? विदुषी ने जवाब दिया - “लज्जा" (“पीथीया" सिकन्दर की पुत्री)
तृप्ति - (परम चिन्तन) 1) कभी भी भोग भोगने से तो तृप्ति मिलती ही
नहीं है, परंतु भोग का त्याग करने से तृप्ति
जरूर मिलती है। 2) सब तर गए तो क्या ? यदि हम नहीं तरे |
सब न तरे तो क्या ? यदि हम तर गए । 3) . “परचिंता" तरल-गरल है बहुत पिया,
अब न पियेगे जागे ! मस्त बने ।
अब हम अपने मन में लीन रहेंगे ! 4) वस्तुओं का, परिवार का, धन का, समाज
का त्याग छुटपुट त्याग है। 5) मन में उठने वाली चपल वृत्तियों का त्याग
'परम त्याग' है। 6) जिस त्याग के बाद भी त्यागने जैसा बाकी
बचे, वह छुटपुट त्याग है। 7) जिस त्याग के बाद त्यागने जैसा बाकी न
बचे, वह 'परम त्याग' है। अनेक त्यागो में परमात्मा का समावेश नहीं होता, परम त्याग में सब त्यागों का समावेश हो जाता है।
9) आत्मा स्वभावतः, परम शांत है।
आधि-व्याधि मुक्त निर्भय निश्चिंत
अभ्रान्त और अक्लान्त है। आश्चर्य फिर भी इस जीवन यह जीवन अनंत काल से परम अशांत है, आधि- व्याधि ग्रस्त,
चिन्ता ग्रस्त, संत्रस्त और भ्रान्त है । मौलिक कारण है
चपल मन में उछलने वाली अनंत चपल वृत्तियाँ, ये वृत्तियाँ अन्तर को सतत् झकझोरती रहती है और शांत नहीं होने देती । जब तक ये वृत्तियाँ उठती रहेंगी, तब तक शांति को साकार नहीं होने देगी। अपेक्षा है, इसके लिए त्याग की, छुटपुट
त्याग की नहीं, परम त्याग की। अनुशासन - स्वयं पर ही
कठिन है, अपनी बेटी पर अनुशासन और नियन्त्रण रखना। उस से ज्यादा कठिन है, अपने बेटे पर अनुशासन और नियन्त्रण रखना। और बहुत ही कठिन है, अपनी पत्नी पर अनुशासन और नियन्त्रण रखना । परन्तु सब से कठिन है अपने स्वयं पर
अनुशासन और नियन्त्रण रखना । तीन माताएँ
1) श्रावक की माता - यतना माता 2) साधु की माता - अष्टप्रवचन माता
3) तीर्थंकर की माता - करुणा माता कल्याण ही करते है चार
1) अनुभवी वैद्य 2) अनुभवी राजा 3) अनुभवी मुखिया 4) अनुभवी गुरु