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________________ 66) हे जीव ! अरिहा शरणं मुझने हो जो बड़े-बड़े राजा-महाराजा और चक्रवर्त्तियों ने आतम शुद्धि करवा । भी, अपना साम्राज्य छोड़कर संयम स्वीकार सिद्धा शरणं मुझने हो जो किया था । तू तेरे विषयसुखों में आसक्त न संयम शूरा - बनवा ।। ||2|| बन। 67) हे जीव ! साहू शरणं मुजने हो जो, धन्ना शालिभद्र की तरह संसार की मोह माया संयम शूरा - बनवा । छोड़कर संयम के कल्याण पथ पर मैं कब धम्मो शरणं मुजने हो जो, विचरुंगा? भवोदधि थी तरवा ।। ||3|| 68) हे जीव ! मंगल मय चार नुं शरणुं धन्ना अणगार की तरह, मैं आहार संज्ञा को सघली आपदा टाले । छोड़कर तप की आराधना में अपनी आत्मा चिद धन केरी डूबती नैय्या को कब लगाऊँगा? शाश्वत नगरे वाले ॥ ||4|| 69) हे जीव ! संयम धर्म को स्वीकार करके गुरुदेवों के चरणों | 75) चत्तारि मंगलं अरिहंता मंगलं में बैठकर आगमों का अभ्यास मैं कब सिद्धा मंगलं साहू मंगलं करूँगा? केवली पण्णतो धम्मो मंगलं 70) हे जीव ! चत्तारि लोगुत्तमा अरिहंता लोगुत्तमा पैंतीस गुणों से सुशोभित जिनेश्वर देव की सिद्धा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा वाणी (अमृत रस) का पान मैं कब करूँगा ? केवली पण्णतो धम्मो लोगुत्तमो 71) तीर्थंकर परमात्मा के द्वारा दी गई त्रिपदी के चत्तारि शरणं पवज्जामि आधार से गणधर भगवन्तो ने रची ऐसी अरिहंते सरणं पवज्जामि, सिद्धे सरणं द्वाद- शांगीधरों को मेरी भाव पूर्वक वंदना । पवज्जामि साहू सरणं पवज्जामि 72) अनंत कल्याण करनेवाली जिनेश्वर देव की केवली पण्णतं धम्म सरणं पवज्जामि आज्ञा को कोटि-कोटि वंदना । 76) खामेमि सवे जीवा 73) हे जीव ! सवे जीवा खमंतु मे जीर्ण हुआ ये शरीर, यहां से छोड़ कर जाने मित्ती मे सव्व भूएसु का है। इसलिए उसकी चिन्ता छोड़ दे, धर्म वेर मज्झं न केणई ||1|| परलोक में साथ में आयेगा, इसीलिए मन को धर्म में जोड़ दे भई..... 77) शिवमस्तु सर्व जगत: परहित निरता भवन्तु, भूतगणाः । 74) अरिहा शरणं, सिद्धा शरणं, साहू शरणं, दोषाः प्रयान्तु नाशं केवली पण्णतो धम्मो शरणं पामी विनये, सर्वत्र सुखीः भवतु लोकः । जिण आज्ञा शिर धरीए ||1||
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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