SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 301
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अल्प सानिध्य हम सभी को मिला, वह आज तक मानस पटल पर विद्यमान है। पुस्तके पठनीय है। एवं हमारे लिए प्रेरणा स्पद रहेगी। लोकेन्द्र बनवट, ASHTA (M.P.) तत्व जिज्ञासा के निमित्त संघ को अच्छी धरोहर मिली। पू. श्री विनयमुनिजी म.सा सरल हृदय श्रमण रत्न है। ज्ञान क्रिया का सुन्दर संगम उनके जीवन में है। नम्रता एवं सरलता के वे धनी है। और जिन शासन के सफलता प्रचारक है। युग युग तक उनकी शासन प्रभावना याद रहेगी। __ श्री पूज्य गु.श्री गौतम मुनि 'प्रथम' इन्दौर (म.प्र.) 'विनय बोधि कण' जिसे पाकर प्रसन्नता का अनुभव किया और महासतीजी म.सा को समर्पित कर दिया। बोहामशीनरी स्टोर, लुधियाना (पंजाब) पू. ज्ञान प्रभाजी की प्रेरणा से ‘विनय बोधि कण'मंगवाया। यह किताब बहुत ही अच्छी और भाषा में भी सरल है। कु. हर्षा एस. चौरड़िया, पाथर्डी (M.S) बहुत ही सुन्दर ग्रन्थ तात्विक, कर्मग्रन्थ का स्पष्टिकरण किया है। हिन्दी भाषी क्षेत्रो में बहुत उपयोगी होगा। स्वाध्यायी गण (रायपुर) (C.G) नेश्रायवर्ती पू. निपुणाश्रीजी म.सा पू. नरेश मुनिजी म.सा की सेवा में प्रस्तुत कर दी गई है, एक जैन स्थानक में रख दी गई है, उपयोगी है। धनराज सांखला, समदड़ी (राज.) चिन्तन पुर्वक लिखी गई, ये पुस्तकें पठनीय एवं आचरणीय है। ऐसा अनमोल ज्ञान हमें याद रखके हमारे तक पहुंचाया है। हमें बहुत अच्छा लगा। आगे भी आपके द्वारा प्रकाशित मौलिक साहित्य आप समय समय पर भिजवाने की कृपा करें। साध्वी कल्पदर्शना, पारोला (M.S.) 'विनय बोधि कण' ग्रन्थ स्वाध्यायियों, शोधार्थियों तथा मुमुक्षुओं के लिए अति उपयोगी सिद्ध होगा। बाबूलाल जैन, शोध संस्थान, लालभवन, जयपुर (राज.) स्वागत गीत स्वागत करते आपका, विनयमुनि महाराज, 'चम्पक' गुरु थे आपके, 'ज्ञानगच्छ' सरताज। गुरु, 'चम्पक' की शान हो शिविरों के सरताज; नत मस्तक महिमा करें, उनकी हम सब आज ।। तुम्हारी ।।५।। तुम्हारी जय जय हो महाराज ||ध्रुव।। वाणी गुंजे आपकी, वन में ज्युं वनराज। 'अन्नराजजी' के लाडले, ‘पापाबाई' के लाल। मन में कोमलता भरी, श्रमणों के सरताज ।। तुम्हारी ।।६।। पुत्र रतन तुमसा मिला, दोनों हुए निहाल।। तुम्हारी।।१।। 'चेन्नई' पर किरपा करी, आप पधारे आज। 'खींचन' में जन्में गुरु, बचपन दिया बिताय। 'पारस' मन हर्षित हुआ, पुरण हो गई आस।। तुम्हारी ||७|| दीक्षाधारी आपने, “गंगा शहर' में आय।। तुम्हारी ।।२।। (दि. ५-७-२००९ को माम्बलम जैन स्थानक में शिविराचार्य 'ललवाणी' कुल धन्य है, जिस कुल के तुम भान। पू. श्री विनय मुनिजी म.सा के चातुर्मास प्रवेश के अवसर पर) खूब बढ़ाई आपने, जिन शासन की शान ।। तुम्हारी ॥३॥ पारस जे. नाहर (T.N) 'धीरज' की वाणी सुन, जाग गया वैराग। भव्य भावना से किया, घर संसार का त्याग ।। तुम्हारी ||४|| |
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy