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“विनय बोधि कण"
पारदर्शी परख (धनाक्षरी छन्द) विनय-बोधि कण में, भरा ज्ञान का आगार, विनय मुनि खींचन, किया उपकार है। प्रश्नों के सही उत्तर, ज्ञान बढ़े निरन्तर, जिन-धर्म का मर्म ही, समझाते सार हैं। पालें शुद्ध साध्वाचार, भाए न शिथिलाचार, शिविराचार्य पण्डित, रहें निर्विकार हैं। पारदर्शी का वन्दन, विनयमुनि चरण, पाएँ दीर्घायु - जीवन, जपे नवकार हैं। क्षमा-पर्व - २००७ गुनाह यदि कोई हुआ, हम सबसे स्वयमेव। माँग- पारदर्शी रहा, क्षमा-दान गुरुदेव ।।१।। विनय मुनि 'खींचन' लिखते, विनय बोधि कण ग्रंथ। पूछे पारदर्शी प्रश्न , उत्तर देते सन्त ।।२।।
गुरु चरणोपासक छन्द राजॐ पारदर्शी उदयपुर (राज.)
सतत् साहित्य लिख रहा पाने हित सहकार।। खोज रहा हर पत्र में गुरूवर चातुर्मास। आज अचानक पा गया अन्तर मन उल्लास ।। पावस दर्शन भावना रखता प्रभौ विशेष। अन्तराय बल कब मिटे नित्य मनन प्राणेश ।। एक बार पुनः वन्दना सादर लो स्वीकार। प्रेषित करता पत्र शुभ दीपक कलम पुकार।। भोपालगढ़ समीप में रूदिया नगर निधान। दीपक उप आश्रय यहां जोधपुर राजस्थान।।
“विनय बोधि कण"
श्रद्धा पद्य - पत्रम् महामहिम महितलमहक कोविद कुल श्रृंगार । न्यायनिष्ट निर्ग्रन्थवर स्पष्ट प्रवचन कार ।। आगमज्ञ आत्मज्ञ हो जिनाकाश भास्वान। श्रमण विनय खींचन' खरे चतुर्थतीर्थ के प्राण।। सुख पृच्छा अभिवन्दना सादर लो स्वीकार। दूर स्थित मी देह से करता शत शत बार।। दर्शन गांधीनगर (बेंगलोर) में हुए अचानक नाथ। अब तक दीपक दिल बसें करता नमन प्रभात ।। गुरुवर क्रिया आपकी अहो! देख प्रत्यक्ष। नत मस्तक दीपक बना सच्चे संयम रक्ष।। मिला लाभ गुरुदर्श का अल्प वक्त भगवन्त। पाद् पद्म सेवा रसिक नित्य चाह अत्यन्त।। मेरे मानस भवन में वास करे प्रतिपाल। दंर्शन कब हो आपके यह इच्छा चिरकाल।। श्रमणाश्रित उर लेखिनी इंगित के अनुसार।
विनय बोधि कण' देखकर पायी खुशी अपार। विनय मुनि जी आपको, वन्दन बारम्बार || दिव्य कलम से आपने, पैदा किये सवाल।
आगम से उत्तर दिये, सचमुच यह कमाल।। जिज्ञासु की भावना, करे जो इसका बोध। विनय मुनिश्री आपका , है यह पावन शोध।। चित्र युक्त झांकी बहुत, ऊँचा करे चरित्र। पुस्तक पढ़कर होगये, गदगद मेरे मित्र।। मन मेरा गुरुदेव की, करता जय जयकार। समाधान हर प्रश्न का, जिनवाणी का सार।। प्रश्न जड़े मोती सरिस, मन का भरम मिटाय। 'खटका' कर स्वाध्याय से, विनय भाव प्रकटाय।। धन्य प्रकाशन कर हुआ, सच मेहता परिवार। विनय बोधि कण' का करे, जग सारा सत्कार।। जिनवाणी से युक्त है, ग्रन्थ बड़ा अनमोल। मोती बिखरे पृष्ठ पर, पाये पुस्तक खोल।। प्रुफ की गलती रह गई। आगे करे सुधार। श्री विनय मुनि खींचन गुरु, मन बोले जयकार।। गुरुवर के कर कमल में, पहँचे मेरा पत्र। 'खटका' त्यागी सन्त ही, खुशी करे सर्वत्र।।
डॉ. खटका राजस्थानी, बिजयनगर (राज.)