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262. “इच्छामि" = मैं इच्छा करता हूँ कि सावद्य
योगों का त्याग तथा पूर्व पाप का प्रक्षालन
करूँ। धर्म भावना की उत्पति हुई। 263. बिना प्रतिक्रमण सामायिक आती ही नहीं
है, पापों से पीछे हटना तथा मिच्छामि
दुक्कडम् रुप होवे। 264. इरियावहिआए विराहणाए = इर्या पथिक
विराधना का। 265. गमणागमणे = आने जाने में। पाणक्कमणे . = प्राणी को दबाया हो। बीयक्कमणे = बीज
को दबाया हो। हरीयक्कमणे = हरि वनस्पति को दबाया हो। प्राणी, बीज व हरी इन
तीनों को खेदित किया हो। 266. संघाइया = इकट्ठे करना. जीवों को दुःख
पहुँचे, इस तरह से इकट्ठे करना, संघात अर्थात ऐसे परिग्रह को भी पाप करके संचय या एकत्रित कर रहे हैं, परिग्रह का संचय करने के पीछे कितने पापों का सेवन करता है जीव। मुछी - आसक्ति परिग्रह
ही है। 267. संघट्टिया = स्पर्श करना = वनस्पति आदि
का संघट्टा करने से भी कोमल शरीर वाले
जीवों को कष्ट पहुँचता है। 268. संघट्टिया में भावों से पुट्टिया का समावेश
हो जाता है। 269. वायु, अग्नि, पानी ,मिट्टी में सुखों के भोग
भाव से स्पर्श होता है, वस्त्र गहने आदि तथा जीवों के प्रति आसक्ति भावसे स्पर्श करना भी संघट्टिया में ही आता है। टच में स्पर्श
होता है। 270. परियाविया = परिताप पहुँचाना, मन वचन
से हम मानव जाति परस्पर एक दूसरे के
प्रति सोचकर-बोलकर कितनी पीड़ा दे रहे हैं, या पहुँचा रहे हैं, रिश्तों में खून-खून तथा ईर्ष्या, चुगली, अभ्याख्यान से हम अपने ही लोगों को कितना परिताप देते
है। अपनों को कितनी पीड़ा देते हैं। हाय! 271. हमारे मन, वचन व काया के असंयम से ही
हम मित्रों उपकारी जनों को इतनी पीड़ा देते है, ये सब “परियाविया” में ही आता है। "गैरों से करम (अच्छा वर्ताव)। अपनों
पे सितम" धिक्कार है मेरी आत्मा को!!! 272. किलामिया = खेद किलामना या थकाए
हो, फूलों से खिले चेहरे को शब्दादि बोलकर मार-पीट आदि से मरछाया चेहरा कर देना, शोकग्रस्त कर देना/हो जाना। 'क्लान्त' करता है। अभिहया = अभिहत, सन्मुख आते हुए को हना हो, अभिहया = इसका दूसरा अर्थ जो सन्मुख है, उनके यश कीर्ति को धूमिल करना, ऐसे दावपेंच कोर्ट आदि में फंसाना जिससे जीवन पर्यन्त खड़े न हो सके, हमेशा दबाव में रखना आदि। सैकड़ों के सामने ऐसे शब्दों को बोलना जिससे उसका
'मरण' हो जाए। 274. ओसा = ओस, उतिंग = कीडी बिल, पण्णग
= पाँच वर्ण की काई, दग = जल, मट्टी = मिट्टी, मक्कड़ा संताणा = मकड़ी के जालों को (कुचला), संकमणे = कुचला हो, जे = जो, मे = मैनें, जीवा = जीव, विराहिया पीडित किया हो। एगिदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, पंचिंदिया = एक इन्द्रिय वाले, दो इन्द्रिय वाले, तीन इन्द्रिय वाले, चार इन्द्रिय वाले, पाँच इन्द्रिय वाले जीवों को। पंचेन्द्रिय घात व बालक की भ्रूण