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213. A) अरिहंत = कर्म शत्रुओं पर विजय (घाती | 221. सावध योग में दुख भरे है, सावद्य योगों के कर्म रूपी शत्रुओं पर)।
त्याग में ही आत्मा के सभी ज्ञान, दर्शन, B) अरहंत = संसार का कोई रहस्य छिपा
सुख व शक्ति आदि गुण भरे! रहे हुए है। नहीं।
वर्जने योग्य हो, वही सावध है। C) अस्थांत = परिग्रह रुपी रथ का अंत।
| 222. अरिहंतों ने ही अरिहंत बनने का मार्ग
दिया, अतएव हमारे लिए महान उपकारी D) अर्हत् = अतिशय महाप्रतिहार्यों सहित (इन्द्रों) के भी वंदनीय पूज्यनीय।
223. जैन धर्म की कितनी भी शाखाएं है, परन्तु E) अरहोन्तर = जिसका कोई रहस्य से
नमस्कार सूत्र के पाँच पदों पर सभी एकमत अंतर नहीं।
हैं, समस्त जगत के प्राणी मात्र के केन्द्र, ये F) अरुहन्त = मोहनीय रुपी बीज जल पाँच पद ही है। गया।
224. “साधयति ज्ञानादि शक्तिभिमोक्ष-मितीः 214. धर्म-आदि के कर्ता, जो परम सत्य पुरुष साधवः” जो मोक्ष प्राप्त करने हेतु ज्ञानादि
तीर्थंकर कहलाते है, साधना से साध्य प्राप्त शक्तियों को प्राप्त करने की साधना करे वो करके साधना का मार्ग बताते हैं।
साधु है। 215. कर्म जल का सदा सर्वथा अन्त, अजर, | 225. स्वयं को स्वयं का नमस्कार होता है, पर
अमर, सिद्ध, बुद्ध, मुक्त सर्व दुःखों का - भावों से स्व-भावों की तरफ ले जाता है अन्त कर गये। लोकाग्र पर विराजमान ज्योत
नमस्कार सूत्र। के समान अनंतानंत सिद्धों के साथ रहते
226. जीवन में अज्ञान रुपी अंधकार हमारा
घोरातिघोर शत्रु है, उसकी पहचान समझ 216. पाँच पदों को दो पदों में भी समावेश किया तथा सही मार्ग दर्शक होते है प्रत्यक्ष गुरु। है 1. सिद्ध पद 2. साधु पद।
"बिना धर्म गुरु, धर्म कैसे करेगा शुरु।" 217. आचार्य पंचाचार के पालक संघ के नेता 227. गुरु हमारी जीवन नौका के नाविक समान तथा 36 गुणों सहित होते है।
होते है। जो स्वयं पंगु हो तो क्या वह औरों 218. उपाध्याय = विशिष्ट साधु शास्त्रज्ञ, अध्ययन को लक्ष्य पर पहुँचायेगा? नहीं। अतः गुरु
व अध्यापन कराते है। पच्चीस गुण वाले जो स्वयं शास्त्रज्ञ हो, वैराग्य भरा हो, गुरु माने गए हैं।
की पहचान सम्प्रदाय या भक्तों से नहीं
करके तीन रत्न सम्यक ज्ञान, दर्शन व 219. साधु = पाँच महाव्रत, पाँच समिति, तथा तीन
चारित्र के आधार पर होनी चाहिये। गुप्ति का पालन करते है 27 गुणों सहित होते हैं।
228. अतः असाम्प्रदायिक भावों से, जहाँ गुरुता 220. पाँच पदो की मौन शिक्षा है, सावद्य योगों
गुणों के दर्शन हो वहीं पर सिर झुका का त्याग करो।
दीजिए।
हा