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________________ है तथा आत्मा ही सामायिक का अर्थ है। | 185. तीर्थंकरों के मुख से अर्थ रुप तथा गणधरों 174. आत्मा का काषायिक विकारों से अलग किया ___ के सूत्र रुप से सामायिक निकली। लोक में हुआ, अपना शुद्ध स्वरुप ही सामायिक है। सामायिक के भाव शाश्वत हैं। 175. शुद्ध स्वरुप को पा लेना ही सामायिक अर्थ | 186. सामायिक का अधिकारी कौन? जो अन्य फल है। (आया सामाइए अव्वे, भगवती सूत्र) जीवों के दुःखों को समझकर अन्य किसी 176. भगवान ने तुंगियापुरी में श्रावकों को कहा जीव को दुःख नहीं देते हैं, सभी जीवों को था कि आत्म परिणति आत्म स्वरुप की अपनी आत्मा समान समझते हैं। उपलब्धि के बिना तपसंयम आदि की साधना | 187. 'संयति-भाव' की सिद्धि के लिए गणधरों से मात्र पुण्य प्रकृति का बंध होता है, ने तीर्थंकरो से सामायिक सुनी। सामायिक फल स्वरुप देव भव की प्राप्ति होती है, का स्वरुप समझा। मोक्ष की नहीं। 188. श्रुत सामायिक, चारित्र सामायिक, तथा 177. अन्त में साधक को व्यवहार सामायिक से सम्यक्त्व सामायिक ये 3 भेद होते हैं। निश्चय सामायिक की प्राप्ति का लक्ष्य होना 189. द्रव्यार्थिक नय के मत से सामायिक जीव चाहिये, क्योंकि निश्चय सामायिक के बिना द्रव्य है (तीन नय) मोक्ष नहीं। 190. पर्यायार्थिक नय के मत से सामायिक जीव 178. व्यवहारिक सामायिक में अनेक प्रकार के का गुण है (चार नय) स्तर श्रेणि की भूमिकाएं क्रमशः होती है। 191. सामायिक किस को प्राप्त होती है? जिसकी 179. नैगम नय से एवं-भूत नय की अति - विलक्षण आत्मा संयम, नियम और तप से सन्निहित शैली है। जिसमें प्रथम से चरम परम होती है, समता भाव सभी जीव-अजीवों सामायिक तक कैसे पहुँचना होता है, भली पर रखता है। एक व्यक्ति से भी द्वेष नहीं भाँति समझाया गया है। रखता हो। 180. सु-मन और सामायिक की जोड़ी है 192. श्रद्धा रुप सामायिक सर्व द्रव्यों व सर्व पर्यायों (अनुयोग द्वार सूत्र) में होती है। देश विरत सामायिक न सर्व 181. मन को सुमन-बनाना ही सामायिक है। द्रव्यों न सर्व पर्यायों में होती है। 182. बाहरी परिणितियों से विरत होकर 193. चारित्र सामायिक सर्व द्रव्यों में होती है - आत्मोन्मुखी होने को सामायिक कहते है। परन्तु सर्व पर्यायों में नहीं। द्रव्य की पकड़ 183. सम अर्थात् मध्यस्थ भाव युक्त साधक की जल्दी होती है। मोक्षा-भिमुखी प्रवृति को सामायिक कहते है। 194. सम्यक्त्व व श्रुत सामायिक की स्थिति उत्कृष्ट 184. मोक्ष के साधन सम्यक् दर्शन-ज्ञान-चारित्र 66 सागरोपम झाझेरी तथा चारित्र की साधना को सामायिक कहते हैं। पाँच सामायिक की उत्कृष्ट स्थिति देशोन करोड़ आचारों का पालन ‘सामायिक' है। पूर्व वर्ष की होती है।
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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