________________
चिन्तन करना ही चाहिये। उत्तम पुरुषों का | 164. हमारे सभी “आदर्श” सामायिक है परन्तु नाम स्मरण करना चाहिए।
वर्तमान में जीना तो 'लोकोपचार विनय' 156. प्रातः व सन्ध्या ये दो काल विशेष सन्धिकाल
के आधार पर ही होता है। माने गये है अतएव अभय काल में सामायिक 165. सामाइयम्मिउ कए समणो इव सावओ हवइ, अनुष्ठान अवश्य ही करना चाहिए। सन्धि
जम्हा एएणं कारणेणं बहसो सामाइयं कज्जा अर्थात् सुन्दर अवसर।
“वि. भाष्य' अर्थात् सामायिक करने पर 157. सामायिक में सिद्धासन, पद्मासन,
श्रावक भी साधु जैसा हो जाता है, आदि
कारणों से सामायिक को बार-बार करना पर्यंकासन तथा सुखासन से बैठ सकते
चाहिए। 158. चक्षु व श्रोतेन्द्रिय की विशेष चपलता होने
166. गुण स्थान क्रमारोहण के आधार पर ही से स्वाध्याय ध्यान तथा जप तप में जुड़े
सामायिक की गुणवत्ता जानी जाती है। रहना चाहिये। (सामायिक में)
167. दर्शन सामायिक (श्रद्धा भाव) का गुण स्थान 159. पूर्व दिशा उदय की सूचना देती है तथा
अविरती सम्यक दृष्टि (चौथा है) उत्तर (उत् = ऊँचा, तर = अधिक) उच्च 168. श्रावक की सामायिक का गुण स्थान पाँचवा गति; उच्च जीवन तथा उच्च आदर्श को (देश विरति श्रावक) है। प्राप्त करने का संकेत देती है, अत एव
169. साधु के गुण - स्थानों की संख्या कुल नव सामायिक करते समय पूर्व या उत्तराभिमुख
है (6 से 14 तक) बैठना चाहिये।
170. जीवों की चार श्रेणीयां 1. सभी जीव 2. 160. निश्चय सामायिक की प्राप्ति नहीं भी हुई तो
गुणी जीव, 3. विपरीत आचरण वाले जीव भी व्यवहार सामायिक को छोड़ना नहीं,
4. दुःखी जीव। इन चारों में समता भाव सात महल का भव्य भवन न मिले। तो
रखते हुए भी अलग अलग परिणामों से क्या रोटी साग छोड़ देना या नहीं खाना।
समझना तभी नय प्रमाण आधार के आत्मा “करत करत अभ्यास के जड़मति होत
के विकास क्रमारोहण समझ आयेगा। सुजान। रसरी आवत जात सील पर पड़त
171. विरोधियों व दुश्चरित्र व्यक्तियों के प्रति भी निशान।।" अर्थात् सामायिक का अभ्यास न छोड़े।
घृणा भाव नहीं होता है, तो ही हमें
सामायिक का सच्चा भाव आया, समझना। 161. निश्चय सामायिक में तो एक ही स्तर (सब समान रुप) होता है। एवंभूत नय सर्व शुद्ध
172. वर्तमान इस विषम व संघर्षमय वातावरण
में माध्यस्थ वृति धारण करने की अति नय होता है।
आवश्यकता है। 162. व्यवहार सामायिक भी स्थूल पापों से बचाती
173. सामायिक के द्रव्य, क्षेत्र व काल आदि को
विस्तार से समझना है तो भी "निश्चय नय" 163. नरक तिर्यञ्च गति को रोकती है सामायिक। ।
तो मात्र “आया सामाइए' आत्मा ही सामायिक