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________________ एक अनुपम जिन शासन प्रभावना परम पूज्य गुरुदेव तपस्वीराज श्री चंपालालजी म.सा के शिष्य परम पूज्य पंडित रत्न शिविराचार्य श्री विनयमुनिजी म.सा “खींचन" शास्त्रों के मर्मज्ञ एवं सूत्रों के गुढ़ रहस्यों को जानने वाले तथा सूत्रार्थ को सरल सहज एवं सरस भाषा में श्रद्धालुओं के समक्ष प्रस्तुत करने की अद्भुत क्षमता रखते हैं। परम सौभाग्य से ऊटी वासियों को २००२ में पु. मुनि श्री का चातुर्मास प्राप्त हुआ। ज्ञान की गंगा ने मानो रैगिस्तान को हरा भरा बना दिया । इस चातुर्मास में ऊटी में अपूर्व तपस्या के कीर्तिमान बने। हितकारी पुरानी परंपराओं के संवाहक मीठी मधुर मारवाड़ी भाषा कहावतों एवं मुहावरों से सजी दिल की गहराइयों को छूनेवाली मिश्री जैसी जिनवाणी आगम के उदाहरणों व गाथाओं को अपनी मेघ सदृश प्रवचन शैली से सभी के हृदय को स्पंदित करने में पु. मुनिश्री पूर्णतः सफल रहे। धर्म से विमुखता की ओर बढ़नेवाली युवा पीढ़ी ने काफी उत्साह दिखाते हुए पु. मुनिश्री की शिक्षाओं को हृदय से अंगीकार किया। साथ ही ज्ञान के प्रकाश से स्वयं को आलोकित करने का भी संघ के सभी सदस्यों ने सुंदर प्रयास किया। कहा जाता है ज्ञान बिना पशु सारिखा, जाणो इम संसार । ज्ञान आराधना थी लहे शिवपद सुख श्री कार ।। ज्ञानी श्वासोश्वास मां करे कर्म नो छेह । पूर्व कोड़ी वरसां लगे अज्ञानी करे वेह ।। पू. मुनि श्री ने अथक परिश्रम द्वारा तत्वों की जानकारी प्रश्नोत्तर के रूप में प्रस्तुत की है, जो जन साधारण के लिए सहजता से बोध गम्य है। साथ ही व्यवहारिक जीवन में नैतिकता एवं सदाचरण को भी पू. मुनिश्री अत्यधिक महत्व देते हैं। पु. मुनिश्री मानव एवं समाज के सर्वांगीण धार्मिक उत्थान के लिए सदैव सजग प्रयास करते रहते हैं। इस “विनय बोधि कण” नामक संकलन संग्रह मे सन् २००२ के ऊटी चातुर्मास में मुनिश्री के द्वारा मुखरित जिनवाणी के मोतियों का संग्रह, विनय बोधि कण भाग ५, सन् २००३ के शांतिनगर बेंगलोर के चातुर्मास के संग्रह, विनय बोधि कण ६ (छः), सन् २००४ के मैसूर (कर्नाटक) के चातुर्मास के संग्रह विनय बोधि कण भाग ७ (सात) एवं सन् २०१० गणेश बाग शिवाजी नगर बेंगलोर के चातुर्मास के संग्रह विनय बोधि कण भाग १३ को एक साथ प्रस्तुत किया गया है । ज्ञान पिपासु धर्म रसिकजन इस संकलन से निश्चय ही अपने ज्ञान में अभिवृद्धि कर जिन मार्ग पर द्रुत गति से अग्रसर होने में सक्षम बनेगे, ऐसा मेरा अटूट विश्वास है। पु. मुनिश्री स्व पर के कल्याण की भावना से जिनशासन की महती प्रभावना करते हुए स्वस्थ एवं दीर्घ आयु प्राप्त करें, यही मेरी शुम भावना है। सोने में सुगंध की तरह ऊटी वासियों को सन् २००५ में पुनः पुज्य श्री का चातुर्मास प्राप्त हुआ, जिसमें ज्ञान की विशिष्ट आराधना हुई, जो ऊटी के लिए सदा अविस्मरणीय रहेगी। प्रस्तुत संकलन में “गागर में सागर” को समाने का सफल प्रयास किया गया है, कृपया पाठक इसका अधिक से अधिक लाभ उठायें । ऊटी दि. १९-२-२०१३ क. मेरूदान लुणावत - ऊटी
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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