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________________ 卐 एक कदम अपनी ओर - 9॥ विषय : सामायिक भाष्य सार हो। सामायिक - ज्ञान दर्शन चारित्र - माया करण - तीन योग से सावद्य योगों के त्याग लाभ : समाय समाय एवं सामायिकं विनयादे होते हैं, वह सर्व सामायिक कहलाती है। अर्थातः ज्ञान, दर्शन, चारित्र, विनय आदि 13. सामायिक में साधु के समीप या पौषधशाला की आय से आत्मा में लाभ (समभाव का) आदि निरवद्य स्थान में एक मुहूर्त काल तक 18 पापों का त्याग करके रहते हैं। सावज्ज जोग विरइ “सामायिक"| | 14. सामायिक में वस्त्र अलंकार (मुद्रिकादि (सावद्यःपाप) गहने) का त्याग होता है। सादगी से व समस्याय! समाय अर्थात समस्याओं की प्रतिलेखन में सरलता होनी चाहिए। समाप्ति सामायिक है। साध के पांच महाव्रतों के धारण व "सावध 4. राग द्वेष विप्रमुक्तोः सामायिकः । योग त्याग” “सामायिक" ही है। पहले 5. सर्व सावध विरति रुप चारित्रम्। सामायिक ली जाती है। 6. आर्त रौद्र ध्यान परिहारेण शत्र मित्र | 16. श्रावक की सामायिक 12 व्रतों मे से नवमाँ काञ्चनादिषु समतायाम्। व्रत (शिक्षाव्रत) रुप होती है। प्रतिदिन करणीय मानी गई है। सामायिक के दो भेद होते है 1. इत्वरिक . 2. यावत्कथिका 17. जो समो सव्व भूएसु, तसेसु थावरेसु य । 8. सावद्य कर्म मुक्तस्य दुर्ध्यान रहितस्य च। तस्स सामाइयं होइ, इह केवलीभासिय ।। (भाष्य गाथा) समभावे मूहूर्तम, तद्वत सामायिकाह्वयम्।। गाथा 18. सामायिक करने से क्या लाभ होता है? अतिशय युक्त तीर्थंकरों आदि के पास छः | उत्तर - सावध योग से विरति होती है काया की रक्षा, विविक्त शैय्या में रहकर (उत्तराध्ययन सूत्र 29 वाँ अध्ययन) सावद्य योग त्याग को सामायिक कहते है। सपाप-व्यापार परिहार निरवद्य योगा सेवा 10. चियं करेइ सुध्दयरं = जो चित्त को शुद्ध याम्! सामायिक : करे वो सामायिकः 20. सावध = निन्द्य कर्म, गर्हित, कषायों से युक्त 11. देश सामायिक = जिसमें मुहूर्त प्रमाण सावद्य तथा वज्र कर्म को सावध (पाप रुपी कहते योग का त्याग होता है, वह देश सामायिक कहलाती है। 21. श्रावक की सामायिक शिक्षा (अभ्यास) व्रत 12. सर्व सामायिक = जिसमें यावत्जीवन तीन | में मानी गई है।
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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