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22. सामायिक क्या है? सामायिक 14 पूर्वा का सार है। सामायिक में ही सभी चारित्र (5 चारित्र) का समावेश हो जाता है।
23. सामायिक परम तप, परमजप, परमपद तथा परमगुण है।
परम पवित्र, निर्दोषक, आत्म कल्याणकअनुष्ठान है, सामायिक ।
24.
25. जैन दर्शन की भाषा में आचरण ! सदाचार को चारित्र या संयम कहते है।
26. महाव्रतो से छोटे (मर्यादित) होने से पाँच अणुव्रत कहलाते है।
27. पाँच अणुव्रतो के गुणों में वृद्धि कराते है, गुणव्रत कहलाते है।
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28. प्रतिदिन करणीयं शिक्षा व अभ्यास करने योग्य सामायिक आदि चार शिक्षाव्रत है।
29. दो घड़ी हिंसा आदि 18 पापों को त्यागकर समभाव में रहना सामायिक है।
30. मोहमाया व राग द्वेष बढ़ाने वाली प्रवृतियों को तथा अशुभ ध्यान को हटाना ही सामायिक का उद्देश्य है।
31. समस्त व्रतों में सामायिक ही मोक्ष का प्रधान अंग है।
32. अहिंसा आदि ग्यारह व्रत इसी समभाव (सामायिक) से जीवित रहते है।
33. दो घड़ी की सामायिक का अभ्यास श्रावक को, मुनि जीवन में यावज्जीवन के लिए धारण कर लिया जाता है
34. पाँचवे गुण स्थान से लेकर चौदहवें गुणस्थान तक एक मात्र सामायिक व्रत की ही साधना की जाती है।
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35. पूर्ण समभाव की प्राप्ति व सामायिक साधना की समाप्ति को मोक्ष अवस्था कहते है।
36. प्रत्येक तीर्थंकर सामायिक से ही साधना शुरु करते है।
37. सामायिक को आत्मा की समभाव परिणति मानी है। भगवती सूत्र “आयासामाइए” निश्चय नय से सम्पूर्ण समभाव की शुद्ध अवस्था ही सामायिक है।
38.
राग द्वेष में माध्यस्थ रहना सम है। मध्यस्थ भाव युक्त मोक्षाभिमुखी प्रवृत्ति का नाम सामायिक है।
39. ज्ञान दर्शन व चारित्र सम कहलाते है, उनमें अमन (सदाचार) यानि प्रवृति करने को सामायिक कहते है।
40. सभी जीवों पर मैत्री रखने को “साम” कहते है, अतः साम का लाभ जिससे हो, वह सामायिक है।
41. सम = अच्छा और अमन = आचरण! अर्थात् श्रेष्ठ अच्छा आचरण ही सामायिक है।
42. उचित समय पर करने योग्य आवश्यक कर्तव्यों
को सामायिक कहते है “समये कर्त्तव्यम् सामायिक" ये पाठ कर्तव्य की प्रेरणा देते है।
43. सामायिक का रुढ़ अर्थ है : एकान्त शांत स्थान पर दो घड़ी 18 पापों का त्याग करके सावद्य योगों का त्याग, सांसारिक झंझटो से अलग होकर अपनी अपनी योग्यता के अनुसार अध्ययन चिंतन ध्यान धर्मकथा आदि करना।
44. सामायिक का लक्षण = समता सर्व भूतेषु, संयम, शुभ भावना, आर्त रौद्र परित्याग सामायिक व्रतम्।
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