SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 261
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मजदूर (हमाल) की तरह काया से पुरुषार्थ तो बहुत करता है परन्तु मजदूरी रुप निर्जरा (नफा) बहुत थोड़ा होता है। 273. सकाम निर्जरा में भावों की प्रधानता के साथ साथ अल्प समय में भी प्रचण्ड पुरुषार्थ की शक्ति से कर्मों की निर्जरा (सकाम) कर डालता है, जैसे भरत चक्रवर्ती। - 274. पापों को त्यागे बिना (जैसे हाथी के पैरों में सांकल होने से गति में तेजी नहीं हो सकती) निर्जरा में तेजी नहीं आ सकती है। 275. सकाम निर्जरा की भूमिका संवर में ही तैयार हो जाती है। 276. पहले संवर का सेवन कीजिए। भविष्य में आपके उच्चतर सकाम निर्जरा होगी ही । 277. संवर में निर्जरा की नियमा होती ही है। 278. बाह्य तप निर्जरा के छः भेद होते है तथा आभ्यन्तर तप के भी छह भेद होते है। 279. बाह्य-तप में शरीर आधारित (शक्ति) तथा आभ्यन्तर तप (निर्जरा) में भावों की भरती (वर्द्धमान) होती है। 280. अकाम निर्जरा दुःख भोगते हुए वर्तमान में भी दुःखी तथा निर्जरा भी अकाम होती है। = 281. सकाम निर्जरा हलुकर्मी तो आभ्यन्तर तप से ही मोहनीय कर्म की निर्जरा कर डालता है, जबकि गजसुकुमाल मुनि जैसे जीव उत्कृष्ट • मारणान्तिक परिषह व महावेदना होते हुए भी बाह्य व आभ्यन्तर दोनों निर्जरा की उच्चतम श्रेणियों में महा निर्जरा कर देते है, ये भी सकाम निर्जरा का उदाहरण है। 237 282. वही ज्ञान सम्यक् ज्ञान होता है, जिसमें सम्यक दर्शन होवे, बिना समकित के सारा ज्ञान अज्ञान ही होता है। 283. नव तत्वों पर यथार्थ श्रद्धा करना जैसे "पाप छोड़ने लायक है” ऐसी अंतरंग श्रद्धा हो, वैसे ही नवतत्वों के यथा यथा गुण दोष को मानना। श्रद्धा करना। 284. निर्जरा का दूसरा नाम तप मार्ग गति भी है। 285. तापयति कर्म दहतीति तप: कर्मों का दहन हो, उसे तप कहते है। 286. निर्जरणं निर्जरा कर्म पुद्गल शाटने कर्मणा अकर्मता-भवते। देशतः कर्म क्षयो निर्जराः । सभी कर्मो का क्षय मोक्ष है। 287. निर्जरा कितनी कितनी होती है ? उत्तरोत्तर उसकी विधि: अविरति सम्यक्तवी की निर्जरा से देश विरति श्रावक की निर्जरा असंख्यात गुणी होती है। 288. श्रावक से साधु की असंख्यात गुणी निर्जरा होती है। 289. साधु से भी अनन्तानुबंधी की विसंयोजना ( सहित) वाले जीवों की निर्जरा असंख्यात अधिक होती है। 290. उससे (अ.वि.स.) भी दर्शन सप्तक क्षय करने वालों की निर्जरा असंख्यात गुणी होती है। 291. उससे (द.स. क्षयी) भी मोह का उपशम करने वालों की असंख्यात गुणी निर्जरा होती है।
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy