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________________ 250. सम् = समभाव रुप। वर = श्रेष्ठ (संवर) 3. प्रमाद = 10000 श्रेष्ठ भाव से समभाव की प्राप्ति होती है। 3. अप्रमाद = 10000 251. जो जो आश्रव है (20 भेद) उनके विपरीत 4. कषाय = 100 भावों को संवर कहते है। 4. अकषाय = 100 5. योग 252. ऐसे सभी अनुष्ठान जो कर्मो को आने को 5. अयोग = 1 रोकते हैं, वे सभी संवर कहलाते हैं। कुलदोष = 101010101 253. संवर के 5,20, व 57 भेद भी होते है। कुलगुण = 10,10,10,101 254. सम्यक्त्व, व्रत, अप्रमाद, अकषाय व (अयोग) | 261. संवर सहित आत्मा की निर्जरा भी उत्तम (शुभ योग) ये पाँच भेद प्रथम 5 प्रकार हुए। कोटी की होती है। 255. अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह | 262. बिना संवर (पाप त्याग) का तप में उत्कृष्ट ये पाँच इन्द्रियों के व 3 योग, ये आठों को निर्जरा नहीं हो सकती है। वश करे तो संवर। कुल 5+5+8=18 भेद 263. अंशतः कर्म क्षय को निर्जरा कहते है। संवर के हुए। 264. सकाम व अकाम दो प्रकार की निर्जरा होती 256. भण्डोपकरण यतना से लेवें व रखें। सुई कुशाग्र यतना से लेवें व रखें। 18+2 = 20 265. देवगति में जाने के चार कारणों में एक भेद हुए। कारण है अकाम निर्जरा। 257. जैन धर्म की शुरुआत सम्यक्त्व संवर से 266. कर्म उदय का अगला समय निर्जरा कहलाता ही होती है। 258. सम्यक्त्व = सुदेव, सुगुरु, व सुधर्म पर 267. निर्जरा यानि झरना-खिरना, आत्मा में से श्रद्धा रखने से ही होती है। कर्मों का अलग होना। 259. तमेव सच्चं निसंकं जं जिणेहि पवेइयं 268. आत्मा को कर्मो का फल (रस) देने के बाद इसको ब्रह्म वाक्य मानना, जहाँ हमारी बुद्धि - अलग हो जाना निर्जरा है। काम न करे - वहां इस सूत्र को याद रखना, 269. निर्जरा का दूसरा नाम शास्त्रों में तपोमार्ग इसका अर्थ है :- जिनेश्वरों ने जो प्ररुपणा बताया है। करी वही सत्य है, निशंक है। 270. नये कर्मो के बंध को रोके वह है संवर तथा 260. असत् कल्पना से एक तरीका फार्मूला पुराने आत्मा में पड़े हुए कर्मों को क्षय करे समझे : वो है निर्जरा। 1. मिथ्यात्व = 100000000 271. अच्छी आत्मा, भली आत्मा बनने के साधनों 1. सम्यक्त्तव = 100000000 में प्रधान तत्व संवर सहित निर्जरा। 2. अव्रत = 1000000 2. व्रत = 1000000 | 272. अकाम निर्जरा मानो भारी बोरी ढोने वाले ह
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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