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25. अवियोग (बिछुड़ने नहीं देना) 26. अमुक्ति (भाव परिग्रह) 27. तृष्णा (अभिलाषा) 28. अनर्थक (आत्मिक कल्याण में बाधा) 29. आसक्ति 30. असन्तोष। 202. अदत्तादान - बिना दान दी हुई वस्तु लेना अदत्तादान है।
203. रावण द्वारा सीता को ले जाना, ये चोरी था।
204. पद्मोत्तर राजा द्वारा द्रोपदी को उठाकर मंगवाना चोरी था।
205. बिना अधिकार की वस्तु या व्यक्ति को बिना मालिक को पूछे अपने अधिकार में कर लेना, ये निंदनीय व तुच्छ कर्म है।
206. चौर्यकर्म की सजा - हाथों को काटने रुप दी जाती है तथा आगामी जन्मों में नरक आदि दुर्गति में जाता है।
207. चौर्य कर्म रौद्र ध्यान में आता है। 208. चौर्य कर्म को छोड़ने पर ही आत्मा को शांति मिलेगी।
209. मैथुन या अब्रह्म ये “चौथा पाप है", ये संसार का मूल है।
210. स्त्री-पुरुष की वेदोदय वृति (काम भोग) को मैथुन कहते है।
211. आत्मा या ब्रह्म से दूर करवाये, उसे अब्रह्म कहते है।
212. चौर्य व अब्रह्मचर्य के तीस-तीस नाम पर्यायवाची बताए है।
213. परिग्रह के दो रूप बाह्य परिग्रह 9 प्रकार तथा आभ्यन्तर परिग्रह 14 प्रकार का होता है।
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214. मन वचन व काया की मूर्च्छा रुप एकाग्रता के परिणामों को परिग्रह कहते है।
परि चारो तरफ से, ग्रह-ग्रहण करना।
215. बड़े-बड़े युद्ध परिग्रह के लिए होते है। 216. परिग्रह के 30 पर्याय वाची नाम बताए है। 217. क्रोध = तिरस्कार युक्त कठोर परिणामों को क्रोध कहते है।
218. मान = अभिमान, स्व प्रशंसा रुप परिणामों को मान कहते है।
219. माया = वक्र-कपटरुप वृति के परिणामों को माया कहते है।
220. लोभ = चाहना रुप लालच वृति के परिणामों को लोभ कहते है।
221. राग = माया-लोभ रुप मिश्रित भावों को राग कहते है।
222. द्वेष = क्रोध - मान मिश्रित कठोर परिणामों को द्वेष कहते है।
223. कलह = झगड़ा या महाभारत जिसमें दोनों पक्ष मरने मारने पर उतारु हो जाते है। (लड़ाई)
224. पैशून्य = दूसरे की बुराईयों को परोसना। 225. परपरिवाद अन्य के दोषों की मिलकर ( रस लेकर) बातें करना ।
226. रति अरति मन पसंद राग को रति, अपसंद पर द्वेष जन्य परिणामों को अरति कहते है।
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227. माया - मृषावाद कपट व झूठ दोनों के सम्मिलित भावों को माया-मृषावाद कहते है।
228. मिथ्या दर्शनशल्य = झूठी श्रद्धा रुपी शल्य को मिथ्या दर्शन शल्य (कांटा) कहते है।