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________________ 194. असत्य को महापाप और सत्य को भगवान माना है। 195. ईर्ष्या व द्वेष वश लोग झूठ बोलते है। 196. तिर्यञ्च गति में जाने का प्रधान कारण झूठ है। 197. 'थोड़ा असत्य' भी बहुत काल तक दुःख देता है। 198. भगवान महावीर ने झूठ नामक पाप का बहुत बुरा फल बताया अलीक वचन को अमान्यवचन भी कहते है। 199. अदत्तादान (चौर्य कर्म) के नाम 30 बताए हैं। गुण निष्पन्न 1. चोरिक्क (चौर्य कर्म) 2. परहड़ (पर हरण) 3. अदत्त (स्वामी के द्वारा दिए बिना) 4. कूरिकंड़ (क्रूर कर्म) 5. परलाभ 6. असंजम 7. परधणंमिगेही 8. लोलिक्क (लौलुपता) 9 तक्कस्तण (तस्करीकाय) 10. अवहार ( अपहार) 11. हत्थलहुतण (हाथ की सफाई) 12. पावकम्मकरण 13. तेणिक्क (स्तेनिका) 14. हरण विप्पणास (हरण वि प्रणास) 15. आदियणा (परधन लेना) 16. धणाणं लुंपना (धन लुम्पना) 17. अप्पच्चअ ( अविश्वास) 18. ओवील (अप्पीड़ ) 19. अक्खेल (अपक्ष) 20. खेव (क्षेप - छिनना) 21. विक्खेव (विक्षेप) 22. कूडा (बेईमानीकूटे) 23. कुलमसी (कुलमलिन करने वाला) 24. कंरवा (कांक्षा) 25. लालप्पण पत्थणा (लालपन-प्रार्थना-निन्दित लाभ) 26. वसण (व्यसन) 27. इच्छा-मुत्छा (इच्छा-मूर्च्छा) 28. तण्हा-गेही (तृष्णागिद्धि) 29. नियडिकम्म (निकृति कर्म) 30. अपरच्छति (अपरोक्ष-नजर बचाकर काम करना) । 233 200. अब्रह्मचर्य के गुण निष्पन्न तीस पर्यायवाची नाम बताए है। 1. अब्रह्म 2. मैथुन 3 चरंत 4. संसर्गि 5. सेवनाधिकार 6. संकल्पी (मानसिकता) बाधना पदानाम (सर्व साधारण को पीडित करता है) 8. दर्प 9. मूढ़ता- अज्ञानता - अविवेक 10. मनः संक्षोभ 11. अनिग्रह 12. विग्रह 13. विद्यात 14 विभंग 15 विभ्रम 16. अधर्म 17. अशीलता 18. रति 19. ग्राम धर्म तप्ति 20. राग चिन्ता 21. कामभोगमार 22. वैर 23. रहस्यम् 24. गुह्य 25. बहुमान 26. ब्रह्मचर्य विघ्न 27. व्याप्ति (स्वाभाविक गुणों का नाश ) 28. विराधना 29. प्रसंग (आसक्ति का कारण ) 30. काम गुण (वासना का कार्य) 201. परिग्रह नामक अधर्म के गुण निष्पन्न नाम तीस बताए है। 1. परिग्रह (ममत्व भाव) 2. संचय (अधिक मात्रा में संचय) 3. चय (एकत्र करना) 4. उपचय (बढ़ाते जाना) 5. निधान (भूमि आदि में गाड़ना) 6. सम्भार (पेटियों में भरना आदि) 7. संकर (मिलावट) 8. आदर (पर-पदार्थो में आदर बुद्धि) 9. पिण्ड (एकत्रित करना) 10. द्रव्यसार (धन ही सार है) 11. महेच्छा (असीम इच्छा) 12. प्रतिबन्ध (पदार्थ से बंध जाना) 13. लोभात्मा (लोभ रुप मनोवृति) 14. महट्टिका (महती आकांक्षा) 15. उपकरण 16. संरक्षण 17. भार 18. संपातोत्पादक (संकल्प विकल्प उत्पादक) 19. कलिकरण्ड (कलह का पिटारा) 20. प्रविस्तर (विस्तार) 21. अनर्थ 22. संस्तव (अर्थ परिचय ) 23 अगुप्ति या अकीर्ति 24. आयास (खेदया पर्याप्त)
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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