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180. भगवतीसूत्र में जयन्ति बाई श्राविका के
प्रश्नों के उत्तर में प्रभु महावीर ने कहा था कि “18 पापों के सेवन करने से जीव भारी बनता है; कर्मो की स्थिति को बढ़ाता है, संसार सागर में डूबता है, तथा चार
गति रुप संसार में परिभ्रमण करता है। 181. हिंसा = हिंसक हिंसा, प्राणा वियोजी करणं
हिंसा। 182. हिंसा नामक पाप के स्वरुप समझाते हुए
शास्त्र कहते है कि हिंसा हिंसा ही नहीं अपितु पाप है, चंड़ है, रुद्र है क्षुद्र है, साहसिक है, अनार्य है, पाप से घृणा
नहीं है, नृशंस है। 183. महा भय है, प्रति भय है, अति भय है।
(हिंसा) 184. भय उत्पन्न करने वाली है, त्रासक है,
अन्याय है। (हिंसा) 185. उद्वेगजनक है, निरपेक्ष है, निद्धर्म है,
निनिष्पाप है। (हिंसा) 186. निष्करुणा है, नरकगमन कारण है, मोह
__ महाभय प्रवर्तक है। (हिंसा) 187. हिंसा को मरण वैमनस्य भी कहा है। 188. “मरण समं नत्थि भयमिति" - मरण से
बढ़कर कोई भय नही है। 189. हिंसा के 30 पर्याय वाची नाम आगम में
दिए गये है: 1. प्राण वध। 2. उन्मूलन (शरीर से आत्मा अलग करना)। 3. अविश्वास। 4. हिंस्य-वि हिंसा। (हिंसा में प्राणों का हनन। 5. अकृत्य। 6. घात। 7. मार। 8. वध। 9. उपद्रव। 10. त्रिपातना (देह, आयु व इन्द्रिय का
पतन करना)। 11. आरम्भ समारम्भ। 12.आयुनाशक। 13. मृत्यु। 14. असंयम। 15. कटक मर्दन। 16. वोरमण (जीव रहित करना) 17. परभव संक्रमकारक। 18. दर्गति प्रपात। 19. पाप कोप। 20. पाप लोभ। 21. छविच्छेद। 22. जीवियंत करण। 23. भयंकर। 24. ऋणकर 25. वज्रवर्त्य। 26. परितापन आश्रव। 27. विनाश। 28. निर्यापना (प्राणो की समाप्ति का कारण) 29. लुंपना
(लोप) 30. गुणानां विराधना। 190. मृषावाद - मिथ्यावदनंवादः! अलीक भाषणे।
अनृतामिधाने, अषद्भतार्थ भाषणे गर्दा आदि
अर्थ दिये गये है। 191. असत्य के 30 नाम दिए गये है:- .
1. अलीक (झूठ) 2. शठ (धूर्त) 3. अनार्य 4. मायामृषा 5. असत्य (असत)6. कूटकपट (अवस्तुक) 7. निरर्थक 8. विद्वेष (गर्हणीय) 9. अनृजुक 10. कल्कना 11. वञ्चना 12. मिथ्या पश्चात कर्म 13. साति (अविश्वास) 14. अपच्छन्न 16. आर्त 17. अभ्याख्यान 18. किल्विष 19. वलय 20. गहन 21. मन्मन 22. नूम (सच्चाई को ढकनेवाला) 23. निकृति (मायाचार से छिपाने वाला वचन) 24. अप्रत्यय (अविश्वास) 25. असमय (सिद्धान्त रहित) 26. असत्य संघता (झठी प्रतिज्ञाओं का धारक) 27. विपक्ष 28. अपधीक (निन्दित मति से उत्पन्न) 29. उपधि - अशुद्ध 30. अवलोप (वास्तविक
स्वरुप का लोपक) 192. झूठ असत्य बोलने के चार कारण - 1.
क्रोध 2. लोभ 3. भय तथा 4. हास्य। 193. नास्तिक मतवादी सभी असत्य भाषी में ही
आते है।