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है, उसी का उपयोग (ग्रहण) जीव कर सकता तथा काल सभी जीवों पर वर्त रहा है।
79. मानव जन्म आदि कर्म (पुद्गल) जन्य 66. योग-सहित जीव ही पुदगलों को ग्रहण साधना के साधन, जो अजीव है, वे जीव करता है। अयोगी नहीं।
को आत्मा कल्याण में सहयोगी बन सकते 67. जीव अजीव दोनो में कुछ समानता होते
है, निर्भर (निर्णय) सिर्फ स्वयं जीव पर हुए भी दोनों के गुण विपरीत ही होते है।
करता है। 68. अजीव में सुख-दुःख होता ही नहीं है। । 80. आठ कर्म अजीव पुद्गल है। 69. जीव द्वारा ग्रहण किए अजीव पदगलों से | 81. पुद्गलों से बनी कोई भी चीज लम्बे काल
तक उसी पर्याय में नहीं रह सकती। सड़न, इस जीव को शुभाशुभ (साता-असाता) आदि फल (अनुभव) मिलते है।
गलन, विध्वंसन आदि ये स्वभाव है, पुद्गल 70. शरीर अजीव होते हुए भी पुण्य कर्म के उदय से जीव को प्राप्त होता है, शरीर को
82. “सम्यक दर्शन, ज्ञान, चारित्राणि मोक्ष माध्यम बनाकर जीव 'आत्म कल्याण' की
मार्ग", यह तत्वार्थ सूत्र का प्रथम सूत्र है, साधना करता है।
इसमें मोक्ष मार्ग क्या है? समझाया है। 71. अजीव (रुचि) दृष्टि वाला जीव मिथ्यात्वी'
83. हम अरिहंत देव के उपासक या श्रमणोपासक होता है।
होकर भी यदि वाण व्यंतर आदि देवों की
पूजा अर्चना (अर्जुन माली के समान) करते 72. जीव दृष्टि वाला जीव सम्यक्त्वी होता है।
है, तो क्या हमें दोष लगता है? हाँ। 73. जीव, अजीवों (पुदगलादि) पर मूर्छा कर
84. अव्रती देव-देवी भी मोक्ष मार्ग की आराधना सकता है। अजीव मूर्छा नहीं करता है।
करने वाले साधु-साध्वी को नमस्कार करते जड़ होता है। 74. अजीव तो जीव पर किसी प्रकार की राग
85. श्रावक को अव्रती देवों की आसातना करना द्वेषात्मक परिणिति नहीं कर सकता है,
नहीं कल्पता परन्तु उनकी आराधना करना सरागी जीवों में राग-द्वेष होता है।
भी तो मोक्ष मार्ग की राह वाले को कैसे 75. अरुपी - अजीव भी हमें जीवों को अपने
कल्पता है।???? गुणों के आधार पर सहयोग करता है, जीव
86. अव्रती देव जो सम्यक् दृष्टि होते है, वे भी जैसे भाव अजीव में नहीं होते है।
मनुष्य बनने व चारित्र धारण करने के इच्छुक 76. मोक्ष पहुँचाने की गति (कहीं भी) में सहायक
होते है। चारित्र को नमस्कार वे भी करते धर्मास्तिकाय है। 77. अनंता जीव ठहरे हुए है, मोक्ष में, इसमें | 87. जगत में चारित्र सहित ज्ञानी वंदनीय, . सहायक अधर्मास्तिकाय है।
पूजनीय माना गया है, मिथ्यात्वी व अव्रती 78. अनंतानंत जीव आकाश (जगह) में रहे है । पूजनीय, वन्दनीय नहीं होता है।
है।