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था।
19. जिस प्रकार अर्थ उपार्जन का तरीका या | 32. मोक्ष में कर्म रहित होने से, जीव होते हुए
जानकारी सीख कर ही धनवान बनता है भी उसे मोक्ष कहा है। उसी प्रकार नवतत्वों का ज्ञान सीख कर ही
33. अनादिकाल से जीव कर्म सहित ही रहा आत्मा धर्म करके धर्मवान बनती है। 20. जीव - जिसके पास जीवन हो, जो जीता
34. कर्म बांधने में राग-द्वेष मूल कारण है।
जीव पुनः पुनः उदय और पुनः पुनः बंध 21. चेतन - जीवन का लक्षण “चेतना" माना है। तथा बंध व उदय के रास्ते चलता है और 22. आत्मा - ज्ञानादि गुणों में रमण करे वो
मुक्ति से दूर होता जाता है। 'आत्मा' ।
35. जीवों के विभाजन एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय 23. भगवती सूत्र में जीव के 23 पर्यायवाची
जाति आधारित हुए है। मास्टर Key के नाम बताए है।
समान है नव तत्वों का ज्ञान। 24. जीव का लक्षण ‘उपयोग' बताया है।
| 36. इन्द्रियों के दुरुपयोग करने से पुनः वे इन्द्रियें
हमें नहीं मिलती है। 25. है दर्शन, ज्ञान चारित्र तपस्या और शक्ति उपयोग जहाँ, चैतन्य गुणों का वास देव
37. बांधे हुवे कर्मों का निर्माण स्वयं जीव ही लक्षण से मानो जीव यहाँ।
करता है। 26. जीव के दो भेद - संसारी, सिद्ध परमात्मा।
38. नव तत्वों का ज्ञान ही अंत में मोक्ष पहुँचाता 2. संसारी जीवों के विभिन्न भेद होते है,
39. चार गति आधारित विभाजन में, मनुष्य 1. त्रस : स्थावर छह काया आधारित। पर्याय महा पुण्योदय से मिलती है। इसी 2. पाँच जाति आधारित।
अवस्था में वह कर्म बंध की बजाय कर्म 3. 14 भेद व 563 भेट भी होते है।
निर्जरा प्रधान जीवन बना सकता है। 28. हमें अपने जीवन को कैसे जीना है? ये | 40. धर्म की अयोग्यता के कारण बिना मन का नव तत्वों के ज्ञान को सीखे बिना प्रायः
जीवन (असन्नी का) मिलता है। जीव के 14
भेदों में से 12 भेद असन्नी है। असंभव है। 29. जीव के 14 भेदो में से एक भेद (सन्नी
41. जीव के 14 भेद का वर्णन इस प्रकार हैपंचेन्द्रिय का पर्याप्त) ही आत्म कल्याण
अपर्याप्ता - पर्याप्ता करने की योग्यता रखता है। सर्व प्रथम नव A) सूक्ष्म एकेन्द्रिय का .... 1. तत्वों का ज्ञान सीखना चाहिए।
B) बादर एकेन्द्रिय का.... 3. 30. नव तत्वों का ज्ञान धर्म का प्रवेश द्वार है। C) बेइन्द्रिय का .... 5. 31. 'जीव' शब्द में कर्म सहित होने की प्रधानता D) तेइन्द्रिय का .... 7.
E) चउरिन्द्रिय का ....
जैसे