SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 248
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. जिण पण्णतं तत्तं - जिन प्रज्ञप्त को तत्व कहते है। तत्व अर्थात् सार-सार (निचोड़ रुप) जीवादि नव को पदार्थ कहते है। 12. “णव सब्भाव पयत्था पण्णता” = आदि। एक कदन अपनी ओर 8 विषय : नव तत्व विवेचना - सार - सद्भाव पदार्थ नव माने गए है। सद्भाव अर्थात् इन नव पदार्थो का अंतर के भावों (श्रद्धा) से मानना । नव पदार्थ - जो जैसा है, उसे उसी रूप में मानना ही सम्यक्त्व है। जीव भावेण सद्दहन्तस्स सम्मत्तं तं विहाहियं भीतरी भावों से नव तत्वों पर यथार्थ श्रद्धा करना ही समकित है। संसार में सत् (सच्च) भाव पदार्थ नौ माने है। 10. नव तत्वों (पदार्थों) के सभी के स्वभाव अलग अलग है, उसे उसी दृष्टि (यथा) रुप श्रद्धा करते हुए हेय और उपादेय करना चाहिए। ज्ञेय तो नव तत्व है ही । 11. बिना नव तत्वों के ज्ञान के कारण आत्मा चतुर्गति में परिभ्रमण करती है। नव तत्वों पर दृष्टांत घटाइए: 1. जीव नाविक समान 2. अजीव उत्तराध्ययन में आए है) - - नाव समान (ये दोनों 224 3. पुण्य अनुकुल हवा | 4. पाप - प्रतिकुल हवा | 5. आश्रव नाव में छेद होना और पानी आना। 6. संवर - नाव में हुए छेद को बंद करना। 7. निर्जरा - छेद से आए पानी उलीचना । 8. बंध- नाव नाविक व पानी मानो एकमेक हो। 9. मोक्ष - नावछोड़कर - किनारे पहुँचना 13. जीव, संवर निर्जरा और मोक्ष ये चार जीव - अजीव, बंध, आश्रव, पुण्य, पाप ये पाँच अजीव है। 14. यथाभूत इन भावों का सत्यार्थ कथन है। जिनपर अन्तर्मन से श्रद्धा करना, सम्यक्त्व मार्ग है शिव पद का। 16. 15. बिना नव तत्व का ज्ञान सीखे, चाहे धन से धनवान हो सकता है परन्तु मोक्ष मार्ग में वह दयनीय दशा में ही गिना जाएगा। श्रावक के 21 गुणों में प्रथम गुण है - पहले बोलें श्रावकजी “नव तत्व” 25 क्रिया का जानकार होवे। 17. वस्तु का वास्तविक (सही) स्वरुप ही 'तत्व' है। 18. यहाँ पर सीखा ज्ञान आगामी जन्मों में भी साथ जाता है।
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy