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की धुन लगी रहती है।
35. 'संतोषवृत्ति' ही 'नाम' की भूख मिटा सकती 25. 'नाम' से अधिक महत्वपूर्ण काम (कार्य)
36. आडंबरो, प्रदर्शनों में 'नाम' ही मुख्य ध्येय
होता है। 26. 'नाम' के आधार पर हमारी गति का निर्माण
नहीं होता जबकि कर्म (कार्य) के आधार 37. हमारा 'नाम' सामान्यतः तीन पीढ़ी से पर गति का निर्माण होता है।
ज्यादा कोई याद नहीं रखता। 27. 'नाम' की भूख आज मानो सबसे बड़ी 38. मनुष्य का न तो जीवन अमर है, न 'नाम'। भूख बन चुकी है।
39. बचपन से पचपन तक 'नाम' के पीछे ही 28. पेट की भूख तो थोड़े से भोजन से शांत दौड़ता दौड़ता ही प्राण छोड़ देता है
हो जाती है परन्तु 'नाम' की भूख ज्ञान के (सामान्यतः) समझ से ही शांत हो सकती है।
40. वीतराग मार्ग ही एक ऐसा मार्ग जहाँ 'नाम' 29. 'नाम' के लिए जीते है हम, ज्ञानी पुरुषों की बजाय आत्मा को महत्व दिया गया, ने कर्म (कार्य) को महत्व दिया है।
गुणों को महत्व दिया है। 30. 'नाम' के पीछे समाज में “परस्पर विग्रह" 41. आत्मा की दुर्गति भले हो जाय परन्तु बने हुए है।
'नाम' प्रसिद्धि की दौड़ में दौड़ रहे मानव 31. नीगोद में जीवों का कोई 'नाम' नहीं होता
का किस समय, किस स्थान पर अंत हो मात्र एकेन्द्रिय कहलाता है।
जाएगा? फिर क्या नाम साथ आयेगा? 32. · संकीर्णता, संकुचितता, आदि अनेक दोष
42. मीडिया ने 'नाम' की भूख को बढ़ाई है। 'नाम' के पीछे पैदा होते है।
43. 'नाम' के क्लेश में कत्ल तक हो जाता है। 33. जैसे पाँच पदो को गुणवाचक नामों से ही | 44. अनन्तकाल से हम अनाम थे, आज हम
पुकारा जाता है “णमो सिद्धाणं" कहने से 'नाम' के पीछे भटक रहे है।
समस्त सिद्धो को नमस्कार हो जाता है। 45. दुविधा में दोनों गये, राम मिला न 'नाम' 34. 'नाम' की भूख भी ego में ही आती है। । मिला।
ईश्वर पर सदा भरोसा रखिए,
वह निन्यानवे द्वार बंद कर देता है, पर भाग्य का एक द्वार फिर भी खुला रखता है।
जिसने हमको ठुकराया, हम तो उसके भी आभारी है, जिसने हमको गले लगाया, वो प्राणों का अधिकारी हैं।