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एक कदम अपनी ओर ॥ विषय : नाम से “अनाम की ओर"
'विश्लेषक एवं प्रवचनकार गुरुदेव श्री विनयमुनिजी म. ‘खींचन' 1. जीव का 'नाम' आत्मा या चेतना रुप है, | 13. आज दान में 'नाम' का महत्वपूर्ण योगदान उसमें नाम होता नहीं, पीछे से रखा जाता
14. 'नामवाद' व राग-द्वेष में दोस्ती है। पहिचान या संज्ञा रुप जीवों के नाम भिन्न
15. अनामवाद व धर्मात्मा की दोस्ती है। भिन्न होते है।
16. 'नाम' की रुचि में भरतचक्री ने ऋषभकुट 3. नव तत्वों के गुण आधारित पहचान रुप
पर अपना नाम लिखा था, परन्तु अन्य का 'नाम' है।
नाम मिटाकर 4. निगोद में रहे अनंत जीवों का 'नाम' होता
17. 'अनाम' बनना ही पड़ेगा चाहे आप मोक्ष है क्या?
जावो या 84 में जावो। 5. अनंत सिद्ध प्रभु के कोई 'नाम' बता सकता
18. पेट की भूख से ज्यादा भयानक 'नाम' है क्या ?
की भूख होती है। अनाम से जीव की यात्रा चालू होती है
19. कहते है कि “धरती अखंड कुंवारी है" और बीच में नामों में भटक गया है। ।
क्योंकि इसका कोई मालिक नहीं बन सका। व्यवहार रुप 'नाम' छदमस्थों की पहचान में सहयोगी होता है तथा गुणगान करने में
20. 'नाम' कर्म जो अघाती माना है वो पुण्य, भी सहयोगी होता है।
पाप दोनों रुपों में होता है। 8. पांच पदो में कोई 'नाम' का संकेत नहीं
| 21. वस्तुओं या पदार्थों के नाम अर्थ व गुणवाची मिलता है।
होते है जबकि मानवों के 'नामा सामान्यतः 9. 'नाम' से 'अनाम' तक ले जाने वाली |
राशि चक्र से रखे जाते है। साधना जैन धर्म है।
भरतचक्री ने 'नाम' लिखकर भी वैराग्य 'नाम' के पीछे कितने महाभारत हो रहे है।
चक्र पाया जबकि कोणिक नाम लिखाने के भावों को समझने वाला ही अनामी बनता
कारण मरकर छठ्ठी नरक मेन गया।
23. छदमस्थ जीवों विशेषकर मानव जाति 11. संज्ञा व पहिचान तक तो 'नाम' ठीक है। | में 'नाम' को प्रसिद्ध करने की दौड़ सी
लगी रहती है। 12. अनंत चौबीसी शब्द अनंत 'नामों का विलिनीकरण है।
| 24. 'मान' कषाय वश हमें नाम प्रसिद्ध करने