________________
110. रज्जब रोष न कीजिए कोई कहे क्यों ही। | 115. दूसरे को नीचा दिखाने का काम कोई न
करना, न सोचना और न किसी को अपमानित हँसकर उत्तर दीजिये हाँ बाबाजी! यों ही।।
होते देखकर जरा भी प्रसन्न होना। सदैव 111. मन में सदा प्रसन्न रहना, चेहरे को प्रसन्न
सभी को सम्मान देना। तथा ऊँचे उठते रखना,
देखकर प्रसन्न होना। रोनी सूरत न रखना तथा रोनी जबान न
116. बुरा कर्म करने वाले के प्रति उपेक्षा करना, बोलना।
उसका संग न करना और उसका बुरा न 112. आपस में कलह बढ़े, ऐसा काम शरीर चाहना | बुरे काम से घृणा करना, बुरा मन-वचन से न करना।
करने वाले से नहीं, उसको दया का पात्र 113. दूसरों की चीज पर कभी मन न चलाना,
समझना। शौकीनी की चीजों से जहाँ तक हो सके 117. गरीब तथा अभावग्रस्त को चुपचाप अपने दूर ही रहना।
से जितना भी हो सके हर संभव उतनी सदा उत्साह पूर्ण, सर्व हितकर, सुखपूर्ण, सहायता करना, परन्तु न उसपर कभी शांतिमय पवित्र विचार करना, निराशा उद्धेग एहसान जताना, न बदला चाहना न उस अहितकर विषाद युक्त और गंदे विचार सहायता को प्रगट करना। कभी न करना।
तेरे वादे पे जिए हम तो, ये जान झूठ जाना। कि खुशी से मर जाते, गर एतबार होता।
★★★★
मैं सही हूँ - No Problem मैं ही सही हूँ - Problem ही Problem
★★★★
क्लेश वासित मन, दुःख भरा संसार। क्लेश रहित मन, ते उतरे भव पार।।
मच्छरदानी के बाहर हजारों मच्छर हो तो कोई बात नहीं, परन्तु मच्छरदानी के भीतर एक भी मच्छर है तो शांति नहीं रहने देगा।