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39. सूर्योदय एवम सूर्यास्त दोनों समय सोने
के लिए उचित नहीं है। सोने की अमर्यादा.
अनेक दोषों की जनक है। 40. गुरु कृपा को भरपुर पाने का प्रयास करना
चाहिए।
चाहिए कि यह श्रावक का घर नहीं है। 27. अतिथि देव तुल्य माना गया है। साधर्मिक
सेवा भी सेवा है। 28. घर के मुख्य स्थान को मनोरंजन (टी.वी)
घर मत बनाओ। घर के केन्द्र से टी.वी
निकाल दीजिए। 29. घर में बड़ो के प्रवेश पर उठकर आदर
सत्कार देना चाहिए। लोकोपचार विनय
का भेद है। 30. घर से बाहर जाने की सूचना बड़ो को
देनी चाहिए। 31. पुनः घर में प्रवेश करने की जानकारी
बड़ो को देनी चाहिए। बड़ो को विनय किया है मानो।
41. प्रतिदिन चौवीस तीर्थंकरों का स्मरण अवश्य
करना चाहिए। विहरमान, गणधर व सतीयों का स्मरण भी करावें।
42. नित्य 'नया ज्ञानाभ्यास करना चाहिए। पढ़मं
णाणं तओ दया।
32.
स्वयं का अथवा अन्यो के कार्य को करने की जानकारी बड़ो को देनी चाहिए। अनुज्ञा विनय है।
33. अपने लिए लाई हुई वस्तु को लेने हेतु
पारिवारिक जनों को आग्रह करना चाहिए। 34. अपनी भूल को तुरन्त स्वीकार कर लेना
चाहिए। 35. बड़ो की बातों का आदर सत्कार सम्मान
करना चाहिए। 36. बच्चों के समीप दिन में थोड़ी देर अवश्य
बैठना चाहिए। 37. घर के बुढ़े बुजुर्गों के पास थोड़ी देर
बैठना चाहिए। 38. 'स्वार्थी' बनना अपने जीवन को निम्न
स्तर का बनाने के समान है। मुझे अब इन्टरेस्ट नहीं है, तुच्छ वचन है।
43. अधिक सोना, अधिक खाना, अधिक
जागना- ये सब श्रावक के आचार नहीं है।
रोगों को जन्म देते है। 44. सूर्यास्त के पश्चात आहार का त्याग जीवन
को संयमित बना देता है। सहन शक्ति
गुण की वृद्धि होती है। 45. एकासना, बेआसना का प्रारंभ जीवन को
अति उत्तम बना देता है। मर्यादा जीवन
बन जाता है। 46. व्यापार में झूठ एवम् अनीति से बचना
श्रावक का मुख्य कर्तव्य है। मार्गानुसारी जीवन जीने के उत्तम बोल है। जानबूझ-कर त्रस जीवों की हिंसा से श्रावक को दूर रहना चाहिए। वर्तमान में त्रस काया
की हिंसा बढ़ी है। 48. परिग्रह की (इच्छाओं की) मर्यादा करें। 49. टी.वी, वी.सी.आर, कम्प्युटर, इन्टरनेट
आदि ने युवा पीढ़ी में अनर्थ पापों की भरमार करदी है, ध्यान रहे कि बिना संस्कारो से यह आशियाना यानि श्रावक का घर पापों का घर न बन जाये।