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50. प्रदर्शन-दिखावों से दूर रहे, अनुमोदना | 61. धीरे-धीरे एवं कम बोलने से घर में
से बचना है तो ऐसे स्थानों पर जाना महाभारत नहीं होते है। (केरला प्रदेश में छोड़ दे।
समान्यतः धीरे ही बोलते हैं।) 51. 'झूठा डालना' भी महापाप है, अन्न का 62. घर में एक दूसरे के हित का ध्यान रखें। अपमान है।
63. नम्रता से सबको अपनाया जा सकता है। 52. वाहनों की गति पर संयम रखें। वाहनो से 64. इस घर (शरीर रूपी घर)को छोड़ना भी हिंसा बढ़ी है।
है - इस पर चिन्तन करें। 53. आमदनी और खरच दोनो का तालमेल | 65. नियमितता मानव की अनिवार्य चर्या होनी नहीं टूटना चाहिए।
चाहिए। 54. अभद्र वेश-भूषा से घर को बचावें। 66. पाँच पाण्डव एवं राम आदि चार भाई,
इन नौ जनों के नामों का स्मरण घर में 55. “आव नहीं, आदर नही, नहीं नयनों में
सदैव होना चाहिए। नेह।
67. जीवन में निराशा' मत आने दो। • 'तुलसी' वहाँ न जाइये, चाहे कंचन बरसे मेह"||
68. विश्वासघात' महा अपराध है। 56. पुण्य की होली ज्यादा मत खेलो,
69. दौलत और मित्रता में सदैव वैर होता है।
70. परस्पर वैर की गाँठे मन बांधे। नहीं तो ज्ञान की दिवाली नहीं होगी
71. प्रति दिन ‘खमत खामणा' के भाव रखो। .तो फिर “अक्षय तृतीया” कैसे मनाओगे।
72. विनय जितना अधिक होगा घर में, शांति 57. “सव्व भूयप्प अप्प भूयस्स" (दशवैकालिक)
सुख उतना ही ज्यादा होगा उस घर में। “खामेमि सव्वे जीवा” (प्रतिक्रमण)
| 73. मन की चंचलता का ध्यान रखते हुए, “मित्ति मे सव्व भूएसु” (प्रतिक्रमण)
उसकी हर बात को मत मानो। इन तीनों पर गहराई से चिन्तन करें। | 74. बीती रात, गई बात। Let go आराधन मार्ग है।
75. नर जाणे दिन जात है, दिन जाणे नर
जाता। 58. पर निन्दा हमारा अनमोल समय बरबाद करती है।
76. मोक्ष मार्ग कभी न छोडूं। 59. कषायों से ही हमारा जन्म-मरण का निर्माण | 77. विवाह शादी में आडम्बरो व प्रदर्शनों व होता है।
अभद्र वेशभूषा से बचें।
-60. सत्संग (सन्त संग) दुनिया का सबसे बड़ा | 78. सामूहिक भोज में अधिकाधिक व्यंजन न तीर्थ है।
बनावें।