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260. अन्तगड़ सूत्र की रचना प्रणाली विनय धर्म | 268. हार्दिकता : हृदय से भरे लोगों से ही करुणा के आचरण से भरी है।
का पोषण होता है। 261. अन्तगड़ का संदेश परिग्रह का त्याग और | 269. स्वार्थ-त्याग : जो दूसरों का दुःख दूर
भोगवृत्ति की हेयता। भौतिक सुखों को तुच्छ करने के लिए अपने सुखों का त्याग करता माना है।
है वही मानवता के मन्दिर का अखण्ड दीप 262. ईर्ष्या और द्वेष से ऐसे विष का संचय होता है कि जिसे खिला दिया जाए वह
270. हृदय : हृदय वह मान सरोवर है, जिसमें भी जीते जी ही मर जाएगा।
करुणा और प्रेम रूपी हंस विहार करते है। 263. परमात्म-विरोध - परमात्मा का विरोध
271. हृदय वाचनः पुस्तक पढ़ने वाले लोग करनेवाला चाहे कितना ही बढ़-चढ़ कर बोल
अपना हृदय भी पढ़ने का प्रयास करें, जाए अन्ततः उसे नष्ट होना ही पड़ता है।
जिसमें पुस्तक से भी ज्यादा रस है। 264. पठन-मनन - पढ़ने के बाद मनन उतना
272. हृदय-सौन्दर्य : चमड़ी का रंग काला होने ही जरुरी है जितना भोजन के बाद पाचन।
से क्या हुआ यदि हृदय सुन्दर है। ' 265. मधुर वचन - जीवन का असली रत्न तो मधुर वचन ही है, शेष सब कंकर-पत्थर।
273. हार्दिकता : मुस्कुराहट में दिये गये आँसुओं
को पहचानना ही हार्दिकता है। 266. संकल्प : अच्छे कामों को आज करने का 'संकल्प' करने वाले बुरे काम नहीं कर पाएँगे।
274. हिम्मत : जीत उसी की होती है जो जीतने 267. संकट विजय : संकटो पर विजय पाना
की हिम्मत रखता है। मनुष्य का धर्म है पर जान-बुझकर संकटो 275. होना : होना तो उसका है, जो अपनी को मोल लेना नासमझी है।
मौन-सेवाएँ देते हैं।
किसके रोने से कौन रुका है कभी यहाँ,
जाने को ही सब आये हैं, सब जायेंगे, चलने की ही तो तैयारी बस जीवन है, कुछ सुबह गये कुछ डेरा शाम को उठायेंगे।।
___★★★★★ बनाने की सोचिए बिगाड़ने की नहीं। बसाने की साचिए उजाड़ने की नहीं। नया नक्शा बनाना है दुनियाँ का अगर। जोड़ने की सोचिए तोड़ने की नही।