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________________ ग्रहण 245. हम कमाते ... और तो सब खाने वाले है | 257. आत्म लक्ष्य से लोकोत्तर आराधना के यह न कभी कहना, न मानना ही। बड़े भेद - बड़प्पन नहीं छोड़ते है। 1. सर्व विरती - 90 जीवों द्वारा चारित्र 246. विकार पैदा करने वाला अश्लील साहित्य न पढ़ना, चित्र न देखना तथा अश्लील 2. देश विरती - सुदर्शन श्रेष्ठी की बातचीत न करना। व्रतनिष्ठा 247. आज का काम कल पर और अभी का पीछे 3. अनुमोदना - श्री कृष्ण वासुदेव की पर न छोड़ना। सामाजिक व्यवस्था में खुली धर्म दलाली ने अरिष्टनेमि प्रभु के छुट नहीं देनी चाहिए। शासन को चमकाया। 248. किसी के दुःख के समय सहानुभूति पूर्ण 4. तप - अणगारों व साध्वियों के तपश्चरण वाणी से बोलना, हँसना नहीं। प्रभु महावीर का वर्णन आया है। . की सहायता से 'अर्जुन' भगवान बन गया। 258. दैवी शक्ति भी चारित्र आराधना से हारती 249. किसी को कभी चिढ़ाना नहीं। 259. साध्वी श्री दिव्य प्रभाश्रीजी के अनुसार 250. दूसरों की सेवा करने का अवसर मिलने पर अंतगड़ दशा सूत्र की शिक्षाए - सौभाग्य मानना और विनम्रता से निर्दोष सेवा करना। A) धैर्य व विश्वास गज सुकुमार की तरह होना चाहिए। 251. देव भी भाग्य नहीं बदल सकता है। B) सहन शक्ति अर्जुनमाली की तरह 252. मातृभक्ति एवं बड़ो के बड़प्पन का वर्णन होनी चाहिए। c) श्रावक लोगों को सुदर्शन श्रमणोपासक 253. बाह्य तप आराधना की कसौटी है। का अनुसरण करना चाहिए। 254. अन्तगड़ सूत्र की वाचना आर्य सुधर्मा और D) धर्म विश्वास- कृष्ण वासुदेव की भांति आर्य जम्बूस्वामी इन गुरु शिष्य का वर्णन होनी चाहिए आर्य प्रभव स्वामी के द्वारा : प्रस्तुत किया गया ऐसा अनुमान है। E) प्रश्नोत्तर की शैली-अतिमुक्त कुमार के समान होना चाहिए। 255. श्रद्धा की छाया में रहा तर्क अर्थ की संगति बिठाता है। F) त्यागवृति-कृष्ण वासुदेव की आठ अग्र महिषियों की भांति होनी चाहिए। 256. अन्तगड़दसा का मुख्य प्रतिपाद्य है मोक्ष और मोक्ष के साधनो की उपादेयता, संसार G) तपश्चर्या - महाराज श्रेणिक की दस और संसार के कारणो की हेयता। महारानियों की भांति होनी चाहिए।
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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